सफ़र में ग़र साथ...
************
सफ़र में ग़र साथ
ये तुम्हारा नहीं होता
नसीब में मेरे भी
किनारा नहीं होता...
मौज़ों के थपेड़ों ने
लिख दी थी तहरीरें
कैसे पढ़ पाती मैं
जो सहारा नहीं होता...
मेरे इरादे ना बदलेंगे
मीनारे रोशनी हो ना हो
काली अमावस में
क्या तारा नहीं होता...
लड़ना है अकेले ही
तूफ़ाँ से तुम्हें माँझी
जज़्बा ए जिगर का सुन
कोई इदारा नहीं होता...
इदारा=संस्था, organisation.
No comments:
Post a Comment