ख़ुशी नहीं है मंज़िल...
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नहीं है ख़ुशी
कोई मंज़िल
यह तो राह है
चलते चलते जिस पर
जीना है
अपनी मस्ती में हर पल
बटोरते हुए
ख़ुशियाँ छोटी छोटी...
आँखों की चमक
होती नहीं है नतीजा
किसी बड़े हासिल का,
एक टुकड़ा मिठाई का
हाथ आना
एक कटी पतंग का
ठंड में भाप उठती
गर्म चाय का प्याला
एक खिला हुआ फूल
एक मुस्कान किसी की
भर देते हैं कुदरतन
ख़ुशी के एहसास से...
ना रूप रंग
ना धन दौलत
ना ही ओहदा और नाम
दे पाते हैं
लम्बे वक्त तक
क़ायम रह पाए
वो ख़ुशी,
होती है यह तो
लम्हों का गुलदश्ता
हर फूल जिसका
होता है
एक गहरा एहसास
ख़ुशी का...
ख़ुशी है
मौज़ू रूह का
इज़हार दिल का
जागना ज़ेहन का
जिया जाना होश में
बिना किसी कोशिश के
जब खिल खिल जाए
हर रौं वजूद की
हर नफ़्स खुद की...
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 9 फरवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्
सुंदर, सराहनीय अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबिना किसी कोशिश के
ReplyDeleteजब खिल खिल जाए
हर रौं वजूद की
हर नफ़्स खुद की...
सही कहा वही होती है खुशी और अब तो ऐसी खुशी की कल्पना भी शेष नहीं रही मंजिलें और कामयाबी की खुशियाँ मनाते अन्दर से खोखले सोशल स्माइल लिए...
वाह!!!
लाजवाब सृजन।
सुंदर सृजन आदरनीय !@
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