Monday, 22 April 2024

पुरानी डायरी

 

पुरानी डायरी 

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टटोलते टटोलते 

एक भूले बिसरे दराज को 

मिली है आज एक डायरी पुरानी 

जर्जर हो गई है 

कुतर भी डाला था चूहों ने 

मेरी ख़ुद की ख़रीदी मुफ़लिसी के दिनों में,

जिल्द जैसे घायल जिस्म हो 

युद्ध में लड़े थके फ़ौजी का 

पन्ने उसके पीले और बदरंग 

मेलन्यूट्रिशन, एनीमिया या डिप्रेशन के 

शिकार इंसान की चमड़ी जैसे 

कहीं कहीं टूटे हुए 

और कहीं तो फटे हुए भी 

सूख कर और पुराने पड़कर 

इतने कमज़ोर 

कि पलटने से ही कोई टुकड़ा 

अलग होकर हाथ में आ जा रहा है...


कुछ कुछ सफ़हों में लिखा हुआ 

तो ज़्यादातर ख़ाली 

ख़ाली पन्नों पर ऐसे ऐसे दाग 

किसी  इंसान के बोलते,रोते, हंसते चेहरों से 

या कोई जानवर के अक्स से 

या रेगिस्तान की पीली आँधी से,

बरकरार  है मगर 

गाढ़ी काली स्याही से लिखे हर्फ़

जो दिल और ज़ेहन की हालत 

या नफ़सियाती दौरों के असर से 

कभी खूबसूरत, कभी लड़खड़ाते,

कभी उदास, कभी उदासीन 

कभी चहकते, कभी चिड़चिड़े

कभी थमे हुए तो कभी भगौड़े हैं...


देखे जा रहा हूँ 

इस हासिल को

कर रहा हूँ महसूस 

कभी छूकर, कभी सोच कर 

कह रहा हूँ मन ही मन

"जाने कहाँ गए वो दिन ?"

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