Sunday, 19 February 2023

बदलते साथी कार्यक्रम : बिंदु बिंदु विचार

 बिंदु बिंदु विचार 

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🔹जिन्होंने आपका  जी भर के फ़ायदा उठाया वो अक्सर ज्ञान देते और दिलवाते हैं कि आप उनके "True color" expose होजाने पर कुछ भी रीऐक्ट ना करें, देवता बन कर जो कुछ हुआ उसे भूल जाए. 


🔹जिन्होंने हमेशा सब कुछ manipulate किया और अपने जीवन को संकीर्ण सोचों और ख़ुदगर्ज़ी पर जिया, अपने नज़दीक से नज़दीक व्यक्तियों को "taken for granted" लिया वो  आपको उपदेश देते  और दिलवाते हैं कि उदार बनिए आदर्शवादी बने रहिए.


🔹ये चतुर चालाक और वाकपटु लोग selective बातें करके दूसरे संवेदनशील लोगों को अपने फ़ेवर में  प्रभावित कर लेते हैं इस बात का फ़ायदा उठाते हुए  कि सामनेवाला इंसान इतना  शरीफ़ है दूसरों को पूरी बात शायद ही बताएँ. इनके इस नोशन को ग़लत साबित करना ज़रूरी होता है. यथासमय इनकी असलियत सप्रमाण इनके नए पुराने समर्थकों के सामने लाने में कोई हिचकिचाहट नहीं रखनी  चाहिए. 

हाँ इसे पूर्णकालिक अभियान भी नहीं बना लेना चाहिए. प्राथमिकताओं का सही चुनाव ही सफलता का सूत्र है, विगत के इन क़िस्सों को बस सफ़ाई करके डस्ट बिन को सुपुर्द करने तक का सोच रखना चाहिए. होशमंदी यही होगी कि इन्हें "नकारात्मक यथार्थ"  समझते  हुए ही डील किया जाय जैसे कि अच्छी फ़सल के लिए झाड़ झंकाड़ की निराई करते हैं.


🔹बिना विलम्ब ऐसे लोगों को अपने जीवन से बाहर कर देना चाहिए भूलकर कि इनका  अमुक व्यवहार अमुक हालात के तहत हुआ होगा.....इस बात में कोई भी रियायत देना समझदारी नहीं. 


🔹ऐसे प्राणी यह भूल जाते हैं वे दिन जब "त्राहि माम त्राहि माम" करते थे और हर undue फ़ेवर माँग कर लेते थे. 


🔹भूल जाते हैं वो फिसलनें, वो फँसना जहां से rescue किया गया था. ऐसे वाक़ये जब ये अपनों को धोखा देते थे और अपने कुकृत्यों पर पर्दा डलवाने में आपकी मदद लेते थे इस प्रतिज्ञा के साथ कि आइंदा ऐसा नहीं होगा, बस इस बार इस जंजाल से निकाल दीजिए...आप सद्भावना में god sent savior हो कर उनका साथ देते हैं जबकि वो आपको महज़ इस्तेमाल करते हैं.


🔹भूल जाते हैं ऐसे जंतु वो झूठी माफ़ियाँ जो बार बार उन्होंने माँगी थी  इसीलिए कि आप से लाभ मिलना जारी रहे, आप उनके चंगुल में फँसे रहें. इनके इन सब व्यवहारों से आपकी मासूमियत को सुकून मिला होगा लेकिन आपको यह मानना होगा कि रिश्तों में आपका चुनाव ग़लत था. आपने पीतल को सोना समझा.....अब करेक्शन करना आपकी अपने प्रति ज़िम्मेदारी है. 


🔹भूल जाते हैं वे intiimate dialogues जो महज़ होठों से बोलते रहे थे. वो आंसू जो किसी के कोमल हृदय को प्रभावित करने के लिए आँखों से झरते रहे थे....और यह उपक्रम उनका बहुतों के साथ at one time होता रहा था. ऐसे शातिर लोग आत्म मुग्ध (narcissist),attention seekers और toxic  होते हैं. 


🔹अपने आर्थिक, सामाजिक, दैहिक, अहमजनित मतलब के लिए ऐसे लोग तरह तरह के आवरण औढ कर शिकार करते हैं और उस शिकार को नोच नोच कर खाते है. 

समय पर पहचान कर दूरी बना लेना उचित, नहीं तो बहुत बड़ा विनाश हो सकता है. 


🔹सौ सुनार की एक लौहार की...ऐसे लोगों पर गहरी चोट लगा कर उन्हें सबक़ देना ज़रूरी ताकि औरों को ना ठग सके, अपने प्यार और दोस्ती की नौटंकियों से बाज आए. जो किया है उस पर सोच सके.


🔹कभी कभी तो नाम और प्रमाणों सहित उनके करतबों को पब्लिक कर देना भी अनुचित नहीं होता, लेकिन आपकी बुनियादी शालीनता रोक सकती  है. हाँ यह आख़िरी कदम होना चाहिए ताकि दूसरे कम से कम इन manipulative narcisst self centered प्राणियों के चक्कर में न पड़े.


🔹संस्कृत की नीति सूक्ति : शठेय शाठ्यम समाचरेत...बिना मन का आपा खोए ऐसे लोगों को expose करना कृष्ण नीति है...आदर्शों के जंगल में  ना भटक कर गीता के उपदेश को याद करते रहना चाहिए जब जब ऐसे लोगों के असली चेहरे reveal होते है. उन्हें उनकी असलियत को याद दिलाते रहना चाहिए उन गुनाहों को भी जो उन्होंने किए और आपकी शरणागत हो कर बच गए.


🔹एहसान फ़रामोश और बेवफ़ा लोगों को माफ़ करना उनका हौसला बढ़ाना होता है...उन्हें यह जताना ज़रूरी होता है कि वे लोगों को बेवक़ूफ़ बनाने में सफल नहीं हुए थे बल्कि लोग उदार और संवेदनशील थे.


🔹बहुत ही अच्छा उसूल है, "नेकी कर दरिया में डाल"...हम बिना कर्ता भाव अपनाए लोगों का भला करें, बदले में प्रतिदान की आशा अपेक्षा ना करें...मन की शांति देता है. लेकिन शब्दकोश में कृतज्ञता, अहोभाव, कृतघ्नता,नाशुक्रा, व्यवहार, परस्परता, शालीनता आदि शब्द भी हैं जिनके अर्थों को जीवन में नकारा नहीं जा सकता. हमारा सहज दैनिक जीवन Give एंड Take के आम  सिद्धांत पर चलता है जिसे नकारना वास्तविकता के प्रति आँख मूँद लेना है. सिद्धांतों के इन झीने अंतरों को समझने के लिए कृष्ण का जीवन और गीता सहायक हो सकते हैं जो हमें चीजों को होशमंदी के साथ देखने में सहयोग देते हैं अन्यथा हमारे सोच एकांगी हो कर हमारे लिए ही उपद्रव का कारण बन जाते हैं.


🔹अहम (मैं-मैं) और यथार्थ स्वाभिमान में फ़र्क़ होता है, अहंकार अवांछित होता है लेकिन स्वाभिमान की पुनर्स्थापना अपने स्वयं के समग्र व्यक्तित्व के लिए अपेक्षित होती है . इसलिए किसी भी शब्द जाल में ना फँस कर निर्लिप्त भाव से इस स्वच्छता अभियान और स्वयं के अस्तित्व को क़ायम रखने पर बिना किसी guilt के काम करते रहना चाहिए.


🔹Word of Caution : इसे पूर्णकालिक अभियान भी नहीं बना लेना चाहिए. प्राथमिकताओं का सही चुनाव ही सफलता का सूत्र है, यह सकारात्मक सोच के साथ किया गया रेचन होता है जो सही कम्यूनिकेशन और मानसिक स्वास्थ्य को बरकरार रखने में मददगार होता है.


🔹ऐसे प्राणी साम-दाम-दंड-भेद सभी तरीक़े आज़माने में माहिर होते हैं और अपने अलावा सभी को मूढ़ समझते हैं. चूँकि कोई conviction नहीं होता इसलिए बहुत स्लिपरी होते हैं, किसी भी कन्सिस्टेन्सी की उम्मीद इनसे नहीं रखनी चाहिए. एक जगह ये घोर सैद्धांतिक दिखा देंगे खुद को दूसरी जगह प्रेक्टिकल, पहले दिन जिसके प्यार और आदर में क़सीदे पढ़ेंगे दूसरे दिन उसी को बहुत ख़राब बताने लगेंगे. इनके कुछ दिन के बोल व्यवहार से इनके बारे में फ़ैसला कर के निजात पा लेना ही हमारे सुकून के लिए अनुकूल होगा. इन्हें सहानुभूति देना या benefit of doubt देते हुए रियायत देना साँप को दूध पिलाने के समान होता है. इनकी दोस्ती जी का जंजाल होती है, सच में ये बदलते साथी कार्यक्रम चलाने वाले किसी के कुछ भी नहीं होते.

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