आचार ए इश्क़...
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ये बोझे
जो बड़े खूबसूरत लगते हैं
परी चेहरा लिए
हाथ में पंख
और चेहरे पे शोख़ियाँ बिखरे
बड़े ज़ालिम और संगदिल होते हैं...
ये किरदार...
रूह की बदसूरती को
ढाँपे जिस्मानी अदायें
चाबुक से लम्स
जो ना जाने कब
खून आलूदा कर डालते हैं
पहुँचा कर चोटें
पूरे वजूद को...
बड़ा लुत्फ़ आता है
शुरुआती दौरों में
महबूब की बाँकी अदाओं संग
इश्किया लफ़्फ़ाज़ी को सुनकर
जो "Mixed Pickle" की तरह
ज़ुबान को ज़ायक़ा देता है
मगर पूरे निज़ाम का
बेड़ा गर्क़ कर देता है...
आम, गाजर, अदरक,
नीबू, मिर्च, लहसुन की तरह ही
दोनों जहां की ज़िंदगानी
जनम जनम का साथ
एक दूजे में सोचों के एक से अक्स
क़समें, वादे, अहद
सीरीं ज़ुबान और अल्फ़ाज़े शहद
इंतज़ार और दीदार का बेआख़री क़सीदे
पुराने राब्ते तआल्लुक़ नदीदे
बायलोज़ी, सायकॉलोज़ी, फ़िलासफ़ी और
शायरी के तेल में डलते है...
वही आचार ना जाने कितनी टेबलों पर
मर्तबान बदल बदल कर सजता है
कभी सची मोहब्बत
तो कभी रोमांच भरा आग़ोश
कभी बुझना बरसों की प्यास का
कभी नई प्यास का जनम
नए नए चटखारे
बेहद फूले अना के ग़ुब्बारे...
Bonus Lines :
मयखाने की जुबां में कहूँ ग़र तो
बार बार "ओल्ड वाइन इन अ न्यू बोटल"
नया चहकना, नया महकना
नयी क़िस्म का लड़खड़ाना
पुराने ढर्रे का सम्भाल लेना
नया साक़ी, नए पैमाने, नयी महफ़िल
नयी कश्ती, नया मल्लाह, नया साहिल...
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