मधु यामिनी रे,,,,,
#########
विकटोरियन हाउसेज* का चक्कर
घोड़े गाड़ी में लगाते
सुनते हुए दास्ताने महलनुमा घरों की
उस कोचवान युवती से
होकर रोमांचित
रुक गये थे हम दोनों भी एक 'पेलेस' में
जीने को कुछ विगत, आगत और वर्तमान,,,
उस भोर
'बीच' पर चल पड़े थे चार नंगे पाँव हमारे
हवा की लहरियों में
सुना रही थी पवन मतवाली हमारा पसंदीदा गीत
टंका हुआ था चाँद भी ठीक हमारे ऊपर
"हम्म !".......और अनगिनत सितारे भी
शानदार और अथाह...
देखा था एकटक मैंने
उन अनोखी आँखों में
मंत्रमुग्ध कर रहे थे वे दृग द्वय..
रहस्य भरे युगल नयन,
जिन पर बस मरा जा रहा था मैं,,,
दीर्घ साँस ली थी उसने
कर रही थी शायद याद कुछ कुछ वह
"क्या तुमने कभी कल्पना भी की थी
इस तरह हमारे फिर एक बार साथ होने की--
कोई दूसरा जन्म या कोई अन्य ब्रह्मांड ?"
पूछा था उसने एक अलग ही अन्दाज़ में
शांत समंदर को निहारते हुए..
"हम्म !"
और चूम ली थी मैंने होले से
गहराती आँखें उसकी,,,
बिखरी हुई चाँदनी
और बिखरे गेसू उसके
चमकती रेत
आँखों की चमक से मिली
एक दिव्य नज़ारे का एहसास सा
सागर किनारे का सुकून
बाहों में डूबे एक दूजे के....
मेरी शायराना फुसफुसाहट
उसका कभी कभी
केवल एक शब्द बोला जाना
"हम्म !"
फिर से एक गहरा सा तूफ़ानी मौन
क्या कुछ नहीं समाया था उस पल में,
उसके मेरे चुने शंख और सीपियाँ गवाह है उसके,,,
शाम मस्तानी
फ़िज़ा थी दीवानी
चल रहे थे हम हाथों में हाथ लिये
मिल रही थी साँसे निरंतर
हो रहा था बोध एकत्व का,,,,
रिलेक्स हो बैठ जाना
कँवले कबाब...कड़े नट्स
हरी सेव...रेड वाईन
मेरा अंतहीन कहानियाँ सुनाने का उत्साह
सुनना उसका दत्तचित्त होकर शिद्दत से
आँखों से बरसते बेशुमार प्यार
उसका कहते रहना 'हम्म !'
"आज के लिए यहाँ इतना ही.."
कहना उसका कई बार,
बातूनीपन से कहीं ज़्यादा मेरा लालच
खुले आसमान के नीचे
कुदरत के बीच
उसके साथ का लुत्फ़ लेने का,
टाले जा रहा था मैं उठना
उसी से उधार लिया 'हम्म !' कह कर बार बार
और फिर उसका
'कुछ'कहने के लिए 'कुछ और' कहने का अन्दाज़ :
"LV** की पैंटिंग्स की वो नई कोफ़्फ़ी टेबल बुक को देखेंगे क्या ?"
जगा दिये थे सोये हुये सुलगते अरमान
समंदर की नमकीन हवा और हमारे सुरूर ने
कहा नहीं था किसी ने कुछ भी
सिवा एक समवेत 'हम्म' के,
....और लौट चले थे हम दोनों,
कदमों में थी एक अल्हड़ गति
और होठों पर,
" ...........मधु यामिनी रे !"***
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विकटोरियन हाउसेज* का चक्कर
घोड़े गाड़ी में लगाते
सुनते हुए दास्ताने महलनुमा घरों की
उस कोचवान युवती से
होकर रोमांचित
रुक गये थे हम दोनों भी एक 'पेलेस' में
जीने को कुछ विगत, आगत और वर्तमान,,,
उस भोर
'बीच' पर चल पड़े थे चार नंगे पाँव हमारे
हवा की लहरियों में
सुना रही थी पवन मतवाली हमारा पसंदीदा गीत
टंका हुआ था चाँद भी ठीक हमारे ऊपर
"हम्म !".......और अनगिनत सितारे भी
शानदार और अथाह...
देखा था एकटक मैंने
उन अनोखी आँखों में
मंत्रमुग्ध कर रहे थे वे दृग द्वय..
रहस्य भरे युगल नयन,
जिन पर बस मरा जा रहा था मैं,,,
दीर्घ साँस ली थी उसने
कर रही थी शायद याद कुछ कुछ वह
"क्या तुमने कभी कल्पना भी की थी
इस तरह हमारे फिर एक बार साथ होने की--
कोई दूसरा जन्म या कोई अन्य ब्रह्मांड ?"
पूछा था उसने एक अलग ही अन्दाज़ में
शांत समंदर को निहारते हुए..
"हम्म !"
और चूम ली थी मैंने होले से
गहराती आँखें उसकी,,,
बिखरी हुई चाँदनी
और बिखरे गेसू उसके
चमकती रेत
आँखों की चमक से मिली
एक दिव्य नज़ारे का एहसास सा
सागर किनारे का सुकून
बाहों में डूबे एक दूजे के....
मेरी शायराना फुसफुसाहट
उसका कभी कभी
केवल एक शब्द बोला जाना
"हम्म !"
फिर से एक गहरा सा तूफ़ानी मौन
क्या कुछ नहीं समाया था उस पल में,
उसके मेरे चुने शंख और सीपियाँ गवाह है उसके,,,
शाम मस्तानी
फ़िज़ा थी दीवानी
चल रहे थे हम हाथों में हाथ लिये
मिल रही थी साँसे निरंतर
हो रहा था बोध एकत्व का,,,,
रिलेक्स हो बैठ जाना
कँवले कबाब...कड़े नट्स
हरी सेव...रेड वाईन
मेरा अंतहीन कहानियाँ सुनाने का उत्साह
सुनना उसका दत्तचित्त होकर शिद्दत से
आँखों से बरसते बेशुमार प्यार
उसका कहते रहना 'हम्म !'
"आज के लिए यहाँ इतना ही.."
कहना उसका कई बार,
बातूनीपन से कहीं ज़्यादा मेरा लालच
खुले आसमान के नीचे
कुदरत के बीच
उसके साथ का लुत्फ़ लेने का,
टाले जा रहा था मैं उठना
उसी से उधार लिया 'हम्म !' कह कर बार बार
और फिर उसका
'कुछ'कहने के लिए 'कुछ और' कहने का अन्दाज़ :
"LV** की पैंटिंग्स की वो नई कोफ़्फ़ी टेबल बुक को देखेंगे क्या ?"
जगा दिये थे सोये हुये सुलगते अरमान
समंदर की नमकीन हवा और हमारे सुरूर ने
कहा नहीं था किसी ने कुछ भी
सिवा एक समवेत 'हम्म' के,
....और लौट चले थे हम दोनों,
कदमों में थी एक अल्हड़ गति
और होठों पर,
" ...........मधु यामिनी रे !"***
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*अमेरिका के 'केप मे' बीच का
**Lorenado Da Vinci जिनकी प्रसिद्ध पेंटिंग है Monalisa
*अमेरिका के 'केप मे' बीच का
**Lorenado Da Vinci जिनकी प्रसिद्ध पेंटिंग है Monalisa
*** टैगोर के एक गीत के शब्द
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