दुर्बलता
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कहा जाता है मानव को
पुतला कमज़ोरियों का
किन्तु बन सकता है वह
भगवान् तुल्य भी
पहचान कर
देख कर
समझ कर
गिराकर
दृढ संकल्प के साथ
अपनी सहज
किन्तु तज्य् दुर्बलताओं को,
कुछ भी तो नहीं है साश्वत
इस संसार में
अतएव
कमज़ोरियाँ भी तो है नश्वर....
वृहत अहम्,
लघु कालीन लोभ,
इच्छा शक्ति का अभाव
आत्म मुग्धता
दिखावे से अर्जित सम्मान
कुंठाएं और हीन भाव
बना देते है
कमजोरियों को
हमारा औढ़ा हुआ स्वभाव
और चालाक बुद्धि
कर देती है
कुछ को कुछ भी साबित
शाब्दिक तर्क़ों के सहारे,
गवाह है इतिहास कि
कर सकते हैं
हमारे निरंतर प्रयास
हम मानवों में
होशमंदता का आविर्भाव
यदि हो हम में
कुछ कर पाने की
स्वयं को निखारने की
अंतर्मन की चाह....
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