Wednesday, 24 June 2015

ऐ संगतराश ! : विजया

ऐ संगतराश ! 
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चंद लम्हों को
पा जाते हैं 
तालियाँ 
तमाशे बाजीगरी के 
किस्से और भी है यहाँ 
अक्कासी और तामीरी के 
कौन पूछता है तुम्हे 
कुदरत के सामने 
महज बस्ती में 
हुआ करते हैं चर्चे 
तेरी कारीगरी के, 
खेत लहलहाते है 
और जंगल भी, 
दिया करते हैं खुशबू
तरोताज़ा फूल भी 
और अत्तर भी,
मत इतरा तू, 
ऐ संगतराश !
दुनिया में पूजे जाते हैं
अनगढ़ पत्थर भी....

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