Tuesday, 24 March 2015

गायें हम तो राग मल्हार

गायें हम तो राग मल्हार 
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कैसी जीत और कैसी हार 
गायें हम तो राग मल्हार.

भीख मांग कर बचपन बीता 
सीख मांग जवानी
हुए अधेड़ तो लग गया यारों 
शेष है अपनी कहानी 
सब कुछ करने को तैयार
गायें हम तो राग मल्हार....

शुक्र प्रभु का जय अल्ला की 
इन्टरनेट जब आई 
हमने अपनी प्रोफाइल पर 
गबरू स्नेप लगाई 
हुई अपनी भी आँखें चार 
गायें हम तो राग मल्हार....

खुशनुमा हुआ बुढ़ापा अपना 
रिमझिम बरसा पानी 
लौटा यौवन हो गए चंचल 
फिरी अपनी रवानी 
हुये मिलन मिटे इंतज़ार 
गायें हम तो राग मल्हार....

लच्छेदार लफ्फाजी बुन कर 
बातें खूब बनाये 
मिल जाये कोई ओंन लाईन तो 
बुढऊ यूँ इतराए 
कर देंगे ज्यूँ आरमपार 
गायें हम तो राग मल्हार....

भेद खुला तो बंच गए पोथे 
हुई बहुत भद्दाई 
केटी नाम धरा जालिम ने 
निकली बुढिया माई 
हँसे कि रोयें जारम जार 
गायें हम तो राग मल्हार...

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