बेहिस तन्हाई
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थोपी हुई
खुद पर
बेहिस
वो तन्हाई थी,
मुझको नहीं
उसको लगा
वो बेवफाई थी.
गुजरी थी
वो शोख
जब जब भी
किनारों से
देखा समन्दर को
तो
मेरी याद आई थी.
मिलना हमारा
और
घड़ियों
साथ रहना वो,
सितारों ने उसे
फिर से वो बातें
कह सुनाई थी .
हवाओं ने
हर्फो अलफ़ाज़ को
कुछ यूँ बिखेरा था
जले ख़ुतूत में
फिर से वो साँसे
भर भर आई थी.
हर राह से
निकली
वो अपना
सर उठा कर के,
सनद वादों की
आँचल में
अचानक
भर जो आई थी..
चुपचाप बैठा
मैं
उसे
मन में बुलाता था
उसी आवाज़ को
सुन सुन
आज वो
लौट आई थी.
(बेहिस=गाफिल, senseless, चेतनाशून्य, benumbed)
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