Wednesday, 4 March 2015

मनड़ो (मन) (राजस्थानी) : विजया

मनड़ो (मन) (राजस्थानी) 
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मनड़ो म्हारो 
घुमक्कड़ घणों,
थिरचक ना रहवे 
अचपळ टाबर ज्यूँ,
कदै जमीन माथे
कदै पताळ में
ह'र कदै तो लाग ज्यावे
उडबा गिगनार में,
कदै अपणायत रा
सोता बहा दे
तो कदै पिछाण रा
टोटा जता दे,
राग- धेष मोह-माया
सगळा रा खेल
ओ बेरिड़ो खेल
राजी घणों हुवे
जे मिल ज्यावे
और बेराजी जद
छिन ज्यावे,
सुवार्थ री संकड़ी सोचां लेयने
देखतो औ चसमो चढ्यो
मनड़ो
स्यात ही देख भाळ सके
मुगत होय
आग्रहां स्यूं,
सुण सुण उपदेश देणिया री बात्यां
पढ़ पढ़ सासतरां रा ठाडा पोथा
इण बिगडयोड घोड़े री रास
जद जद खींचा
औ घणी दबड़क चाल चालण लागज्यावे
हाथां बाथां ना रहवे,
साखी बण जद जद देखां इण ने
औ देण लागज्या साथ
मानण लागज्या बात,
उडीक है बिं घड़ी की
जब म्हारो बायलाचारो
हु ज्यासी म्हारे मनड़े स्यूं
ह'र
म्हारी प्रज्ञा में
आ बस सी
थिरथा रो आणन्द.....

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