किस्सा स्वामी आनंद सवाली उर्फ़ भूतपूर्व मवाली का..
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सुना था
उस दिन दरवाजे पे आया था
एक सवाली,
फटी हुई कथरी थी
झोली थी उसकी खाली
अल्लाह हू
अल्लाह हू की
रट लगा रहा था
तस्बीह के मणकों को
जोरों घुमा रहा था,
सुन कर आवाज़ उसकी
चली आई थी
एक घरवाली
बोली ऐ अवांछित निख्खटू !
तुझ सा एक
इस घर में भी
पलता है
मेडिटेशन करते करते
अजीब सा मचलता है
जमीन के सवालों पे
जवाब आसमां के उगलता है
जब से पड़ा है
दाढ़ीवाले के फेर में
लाख टालने पे भी
ना टलता है,
स्वामियों से कम
माँओं से जियादह मिलता है
कोई मिल जाए सुनने वाला
फूल बेमौसमी सा खिलता है,
जो कहता है
शायद खुद भी ना समझता है
फिर भी ना जाने क्यों
दिन रात
दोपहर शाम
बकता झकता है...
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सुना था
उस दिन दरवाजे पे आया था
एक सवाली,
फटी हुई कथरी थी
झोली थी उसकी खाली
अल्लाह हू
अल्लाह हू की
रट लगा रहा था
तस्बीह के मणकों को
जोरों घुमा रहा था,
सुन कर आवाज़ उसकी
चली आई थी
एक घरवाली
बोली ऐ अवांछित निख्खटू !
तुझ सा एक
इस घर में भी
पलता है
मेडिटेशन करते करते
अजीब सा मचलता है
जमीन के सवालों पे
जवाब आसमां के उगलता है
जब से पड़ा है
दाढ़ीवाले के फेर में
लाख टालने पे भी
ना टलता है,
स्वामियों से कम
माँओं से जियादह मिलता है
कोई मिल जाए सुनने वाला
फूल बेमौसमी सा खिलता है,
जो कहता है
शायद खुद भी ना समझता है
फिर भी ना जाने क्यों
दिन रात
दोपहर शाम
बकता झकता है...
तस्बीह=जप माला
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