Friday, 13 March 2015

इंद्रधनुष के रंग

इंद्रधनुष के रंग 
# # # # # # 
लिए हाथों में 

डलिया जीने की 
जीवन उद्यान में 
चुनने फूल 
इन्द्रधनुष के 
सभी रंगों के 
निकल गया था मैं,
हर रंग का 
अपना ही किस्सा था 
हर रंग का 
अपना हिस्सा था,
देखा तो 
जुदा था रंग प्रत्येक का 
चखा तो 
अलग था स्वाद हर एक का,
चलती रही थी 
जद्दोजेहद 
हर घड़ी हर पल
कभी पर्वत पर पांव थे 
सुनी थी कभी 
नदिया की कलकल, 
धरती की गोद में 
मैं खेला था 
समन्दर ने भी 
मुझ जैसे को 
शिद्दत से झेला था,
एक भोर 
जब चाँद घर जा चुका था 
हर दिन की तरह 
सूरज ने मुझ तक 
भेजी थी किरणे अपनी,
आज 
कुछ और ही होना था 
कुछ पाना था 
कुछ खोना था,
चुरा कर फूलों से 
हर रंग को मैंने 
अलग अलग पात्रों में भरा था 
महक फैली थी चहुँदिशि
पर राज कुछ गहरा था,
उठाया था एक रीता बर्तन 
उड़ेला था सब कुछ उसमें 
घुल गए थे रंग सारे 
हुआ था उदित एक रंग नयां उसमें,
खुश हुआ था सूरज 
हरियाली मुस्कुराई थी 
चाँद तारों ने भी 
उस शाम 
खबर मिलने कीपहुंचाई थी,
गूंजा था सुर आठवां 
वागेश्वरी की वीणा से
नाचा था आलम सारा 
फिजायें खिलखिलाई थी,
हुआ था कुछ ऐसा अप्रतिम 
कह पायेंगे उसको कैसे 
ये निर्बल पंगु शब्द 
घटित हुआ था आलिंगन 
स्वयं संग स्वयं हुआ आबद्ध..

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