Sunday, 22 March 2015

उन्माद : विजया

उन्माद
+ + + + +
नस्ल
जाति
मज़हब
और
सोचों के
नाम
कब तक बहाओगे
लहू बेगुनाहों का,
अधपढ़े हो तुम
जाहिल भी हो
या हो
खुदगर्ज़
तंग ज़ेहन
संग दिल,
हल मुश्किलों का
होश में है
जूनून
और
उन्माद में नहीं..

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