समंद
# # # #
दर्दाया था
समंद
उस दिन
कहा था उसने
बूँद को,
समां लो ना
मुझ को
खुद में ,
कितनी उदासी है
मेरे इस विस्तार में
समाई है
पीड़ा कितनी
मेरी इस अतल गहराई में,
काश मैं भी हो जाऊं
तुझ सा
लघु
चंचल
जीवंत
पारदर्शी
बेपरवाह
मिटने को
मिलने को
तत्पर,
नहीं चाहिए मुझे
यह खुली कैद
जिसे सब कहते हैं
ना जाने
किस भ्रम में
मेरा 'वुजूद'....
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दर्दाया था
समंद
उस दिन
कहा था उसने
बूँद को,
समां लो ना
मुझ को
खुद में ,
कितनी उदासी है
मेरे इस विस्तार में
समाई है
पीड़ा कितनी
मेरी इस अतल गहराई में,
काश मैं भी हो जाऊं
तुझ सा
लघु
चंचल
जीवंत
पारदर्शी
बेपरवाह
मिटने को
मिलने को
तत्पर,
नहीं चाहिए मुझे
यह खुली कैद
जिसे सब कहते हैं
ना जाने
किस भ्रम में
मेरा 'वुजूद'....
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