Wednesday, 11 March 2015

व्यर्थ : विजया

व्यर्थ 
+ + + 
क्यों करते हैं हम 

चर्चाएँ 
अर्थ और व्यर्थ की 
होकर आधीन 
अपने ही 
पूर्वाग्रहों से
या 
हेतु संकीर्ण हित साधन, 

परिवार 
समाज 
देश देशांतर 
राजनीति
धर्म 
शिक्षा
सम्बन्ध 
संघर्ष, 
बोलबाला है 
सब ओर 
अपने पक्ष में 
तर्कें घड देने का, 
घटनाओं को 
अपने ही सांचों में 
ढाल देने का,
दौड़े जा रहे हैं हम 
सिद्ध करने 
उन तथ्यों सत्यों 
परिभाषाओं 
मान्यताओं को
संशय है 
हम स्वयं को 
जिनकी सत्यता में, 
स्पष्ट अस्पष्टता की 
धुंध से घिरे हम 
मरे जा रहे है 
दुविधाओं 
और 
विरोधाभाषों में...

(आज चीन के कम्युनिस्ट नेताओं द्वारा दलाई लामा की reincarnation पर की गयी अभूतपूर्व टिपण्णी के सन्दर्भ में प्रतिक्रिया पढ़ कर इसे लिखने का मानस बना : कितना विरोधाभास है कि नास्तिक और धर्म को अफीम मानने वाले कम्युनिस्ट कह रहे हैं कि reincarnation की थ्योरी सही है और दलाई लामा जो खुद इसके प्रतीक है कहते हैं कि अब 'No more reincarnation of Dalai Lama'.....कठपुतली दलाई लामा बनाकर तिब्बती लोगों को कब्ज़े में रखने की चाह रखने वाले चीनी हुकमरानो को दलाई लामा का यह कथन ईशनिंदा लग रहा है...और दलाई लामा के ह्रदय/मष्तिष्क परिवर्तन पर बस यही कहा जाय एक समसामयिक उदेश्य को पकाने परोसने के लिए शायद उन्होंने बुद्ध की हर बात को जांचने परखने के सिद्धांत को कार्यरूप दिया है....यह तो बस एक उदहारण है ऐसी मिसालें तो हर रोज सामने आती रहती है)

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