Friday, 16 June 2023

चूहेदानी : विजया

 चूहेदानी

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लालच और डर 

होती है दोनों में ही

असीम ताक़त,

कहने वाले तो कहते हैं 

अक्खी दुनिया चलती है 

इन दोनों के ही चलाए...


छोड़ दिया जाता है 

लटका कर 

कुछ खाने की चीज़ को 

पिंजरे के अंदर के काँटे के 

एक सिरे पर, 

अटका दिया जाता है ज़रा सा 

स्प्रिंग वाले दरवाज़े के 

लीवर को 

काँटे के उस सिरे में 

जो उभरा हुआ होता है 

पिंजरे की सुंदर छत पर...


सारे इंतज़ाम 

अंदर बाहर के 

कर दिए जाते हैं पुख़्ता,

और देख कर रोटी के टुकड़े को 

पाकर उसकी मादक ख़ुशबू को 

चला आता है 

ललचा कर चूहा

बचा कर नज़रें सब की 

रात कर अंधेरे में,,,

और घुसते ही भीतर 

हो जाता है बन्द 

दरवाज़ा पिंजरे का...


छोड़ दिया जाता है 

पौ फटते ही 

बाहर चूहे को,

और सज जाता है 

फिर से पिंजरा 

फँसाने किसी 

नए चूहे को...


(स्पष्टीकरण : चूहे और चुहिया दोनों के लिए पिंजरे के प्रोसेस में कोई फ़र्क़ नहीं, पात्र के रूप में चूहे को कविता में लिखना लिंग भेद नहीं समझा जाय कृपया)

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