Friday, 16 June 2023

गिवर्स एण्ड टेकर्स उर्फ़ दास्ताने यूज एण्ड थ्रो

 विदुषी का विनिमय सीरीज़ 

===============


गिवर्स एण्ड टेकर्स उर्फ़ दास्ताने यूज एण्ड थ्रो 

#########################


मोटे मोटे तौर पर हम लोगों के दो वर्गों में देख सकते हैं : देनेवाले (Givers) और वसूलने वाले (Takers).  प्रवृतियों में किस लक्षण की प्रमुखता और प्राबल्य है इसे हम आकलन के लिए मान दंड के रूप में ले सकते हैं.


रोज़ मर्रा के व्यवहार में बहुत कम मिसालें होती है ऐसे टेकर्स की जो वंचित और मजबूर होते हैं और गिवर्स से तहे दिल से जुड़ा सहयोग पाते हैं एवं गिवर के प्रति अहोभाव/कृतज्ञता के भाव भी दिल में बसाये रखते हैं, इन भावों को प्रामाणिकता के साथ अपनी गतिविधियों में भी बिंबितकरते हैं. इस नोट में हम ऐसे सकारात्मक टेकर्स की बात नहीं कर रहे हैं, इस विषय पर फिर कभी बतियायेंगे.


बहुत से टेकर्स या तो चालू-चालाक होते हैं या अव्वल दर्जे के ढीठ या दोनों का मिश्रण. उनके बेक ऑफ़ माइंड में अपने शिकार को हलाक करने का जज़्बा होता है. उनके वसूली के एजेण्डे में ना केवल भौतिक चीजें जैसे दौलत, सुख सुविधाएँ, फ़ेवर्स, जिस्मानी सुख आदि विषयवस्तु होते हैं बल्कि प्रेम, दोस्ती, संबंध, आध्यात्म आदि के दिखावे/फ़ंटसीज़  भी मीनू में आते हैं. 


ऐसे संवेदन शून्य लोगों की प्राथमिकता अपना क्षुद्र स्वार्थ साधन होता है और वे इसके लिए भावुक बेवक़ूफ़ों की तलाश में रहते हैं जो उनके जाल में फँसने को तत्पर होते हैं. चूँकि कोई भी कमिटमेंट और कनविक्शन इन वसूलीबाज़ों का नहीं होता इनके खोखले शब्द कुछ भी लंबा चौड़ा कह देते हैं जिसे भावुक "गिवर" फ़ेस वैल्यू पर ले कर निरंतर फँसता जाता है. 


ये चतुर चालाक "टेकर्स" मैनिपुलेटिव स्किल्स" (हेराफेरी का कौशल) के मालिक होते हैं, बहुत ही स्लिपरी (चिकने) होते हैं, याने चिकने घड़े. सैद्धांतिकता और आत्मीयता की बातें करके माहौल बनायेंगे..आपकी शान में तरह तरह के Unusual क़सीदे पढ़ेंगे जो वस्तुत: दो धारी तलवार जैसे होते हैं....जैसे परिवार और समाज से दबे इंसान को कहेंगे-तू बहुत धैर्य वाला है, सहनशील है...तुम जैसे लोग देखने को नहीं मिलते आज के जमाने में और साथ ही साथ उसकी कमज़ोरियों और दब्बूपन को भी घूमा फिराकर कोसेंगे...अपने आज़ाद होने का दम भर के उसमे अहसासे कमतरी के एहसास इंजेक्ट करेंगे. इस तरह क्रमशः ये कुटिल लोग  उस इंसान को अपने भावनात्मक क़ब्ज़े में कर लेंगे....ऐसे शिकारों का खूब इस्तेमाल करेंगे और मज़े की बात यह कि ये विक्टिम्स भी ख़ुद को इनका मुरीद मानते हुए हमेशा बहुत कुछ करते रहेंगे बिना किसी अपेक्षा के. ये होशियार टेकर लोग अपने हर रिश्ते को एक अलग "कोठरी" में रखते हैं और दूसरों को उसकी भनक तक नहीं लगने देते, इस तरह ये अपनी मन मर्ज़ी से शिकार को अपने बनाए एकांत में नोंच नोंच कर किश्तों में खाते रहते हैं. ये छोटी छोटी सेवाओं से लेकर बड़े बड़े फ़ेवर अपनी इन मादक फसलों को काटते हुए रीप करते रहते हैं. चूँकि इनकी कोई मूल्य निष्ठा नहीं होती और "इस्तेमाल करो और फेंक दो" की मान्यता रखते हैं, ये बेकाम हो गये लोगों को अपनी ज़िंदगी से डम्प कर देते हैं, हाँ एक छोटा सा एंकर/अटकाव भी बनाए रखते हैं फँसाने के काँटे की तरह ताकि जब चाहें "Happy Days are here again" वाला समाँ फिर से बांध सके. ये लोग इतने बेशर्म होते हैं कि आज जिस बात को कहा, कल उसके डायामेट्रिकली अपोजिट कहानी कर देंगे, जब पॉइंट आउट होगा तो पहले का कहा सिरे से नकार देंगे या कोई इंटेलेक्चुअल एक्सप्लेनेशन हाज़िर कर देंगे.


हाँ, हमारी नायिका विदुषी का व्यक्तित्व भी कुछ ऐसा ही था. बहुत शिकार कथाये हैं उसके  जीवन की. ऐसा नहीं कि उसने  अपने करतबों को जस्टिफाई नहीं किया हो क्योंकि बात चीत के दौरान या पकड़े जाने पर अकाट्य तर्कों और युक्तियों के सहारे वह अपने कृत्यों को आधार देने की कुचेष्टा करती थी यह बात और थी कि सोचों की गहराइयों में वह जानती थी कि वह ग़लत 

है और दूसरा उदार होकर उसके कल्याण के लिए ही सुन रहा है और सुझाव दे रहा है. 


शालिनी नामक महिला का क़िस्सा ही लें. 


शालिनी भी  उसी काम्प्लेक्स में रहा करती थी. बहुत ही शालीन, धैर्यवान संस्कारी और मृदु स्वभाव वाली महिला थी शालिनी जी . अपनी भलमनसाहत, उदारता और कर्त्तव्य बोध के कारण जो वस्तुत:  त्याग और सौहार्द की एकतरफ़ा भावना और सैद्धांतिक प्रतिबद्धता से परिपूर्ण था के चलते जॉइंट फ़ैमिली में शोषित हो रही थी. बिना कहे हरदम सहे, वाली प्राणी थी शालिनी . इसका  सीधा असर शालिनी के मन तन पर पड़ता था. ये मुश्किलें कई गुना हो जाती थी क्योंकि शालिनी के पति प्रकाश एक सेल्फ मेड भले इंसान और कर्तव्यपरायण कर्मठ व्यक्ति . उनकी चुप्पी और तटस्थता सहनशील किंतु भावुक और संवेदनशील प्रस्तुति के लिए भौतिक और मानसिक दुविधाएँ बढ़ा देता था. 


बहुत प्रोटेक्टिव थी शालिनी अपने बच्चों के लिए और उनके सर्वांगीण विकास के लिए भी जूझती रहती थी. अपनी लग्न और कर्मठता की बदौलत इस अभियान में उसने और उसके सुसंस्कृत होनहार किड्स ने उल्लेखनीय सफलता हासिल की थी, प्रभु की भी उस पर असीम कृपा थी. सद्भावना और स्वाभिमान उसकी सबसे बड़ी स्ट्रेंथ थे.


शालिनी  का मानो एक मात्र जीवन उदेश्य था सब का भला करना. ज़रूरत में सब के लिए खड़े हो जाना और दिल से मदद करना. 

मृदु और करुणा भरे स्वभाव के कारण शालिनी  के संबंध हर मिलने वाले से आत्मीय स्तर पर अनायास ही हो जाते थे. मेरे जाने उसका अति विनयशील होना उसके लिए दमन जनित प्रतिक्रियाओं और कुंठाओ का जनक हो गया था जिस से उसका स्वास्थ्य भी प्रभावित रहता था. इस खाके से आप शालिनी की शख़्सियत का अन्दाज़ लगा सकते हैं. 


एक ही काम्प्लेक्स में होने के कारण किसी परेशानी भरे दौर में विदुषी के संपर्क आई थी भावुक और आदर्शवादी शालिनी.  अपने कान और "लागू नहीं  हो सकने वाली" सलाहें देकर विदुषी ने इस निरीह और निश्छल को अपने साइकोलॉजिकल फोल्ड में ले लिया था. पद के हिसाब से शालिनी  का पति विदुषी के पति से बहुत जूनियर था, व्यवहार, आने जाने और सामाजिक सम्पर्क में पद-तोलन विदुषी भी किया करती थी मगर फ्रंट पर नाम अपने पति का लगा कर ख़ुद को पाकीज़ा बना देती थी.  नैहर की तरफ़ से शालिनी  का बैकग्राउंड विदुषी के मायके से ज़्यादा सुसंस्कृत और रसूख़ वाला था, उसकी शिक्षा भी कॉन्वेंट स्कूल में हुई थी और उसने केमिस्ट्री  में ग्रेजुएशन भी किया हुआ था. सब ऑड्स के बावजूद भी ससुराल को भी उसने मायके की तरह ही अपना घर समझा और जो भी बन पड़ा तहे दिल से किया.  जैसा कि बताया मैं ने शालीन, सहृदय और स्वाभिमानी महिला थी शालिनी. लेकिन  पारिवारिक परिस्थितियों ने उसके सब प्लस पॉइंट्स को डिस्काउंट कर दिया था. अपने गणितीय मस्तिष्क में विदुषी इन सब तथ्यों को प्रोसेस कर चुकी थी और अपना गेम प्लान बदस्तूर डिज़ाइन किए हुए थी....जिसे बिट्स एंड पीसेज में लागू करती रहती थी.


विदुषी अपने अंतर की गहराई में शालिनी को सख़्त नापसंद करती थी. उसके चिंतन, ग्रूमिंग, हैसियत, पजेसिवनेस, हठधर्मिता आदि पर ख़ुद को आला दिखाते समझते हुए हुए गाहे बगाहे अपने "एक और नज़दीकी सर्कल" में चर्चा भी कर लेती थी ताकि उसकी दार्शनिकता और दरियादिली का इम्प्रैसन बरपा होता रहे.  शालिनी के  प्रति अपने वितृष्णा के भावों को विदुषी अनासक्ति का नाम दे देती थी जैसे कि अपने बड़बोलेपन और अनुशासनहीनता को आज़ाद ख़याली का, ग़ैर जिम्मेदाराना जीवन शैली को सहजता और स्वाभाविकता का. कवर अप करने और मुलम्मा चढ़ाने में माहिर थी हमारी नायिका विदुषी. 


विदुषी शालिनी को कभी भी अपने "ऊँचे" वाले सर्कल में एकनॉलेज नहीं करती थी. मिलना जुलना मैन स्ट्रीम से बाहर ही होता था. विदुषी की किसी भी पार्टी, सोसल गैदरिंग और अन्य आयोजनों यहाँ तक कि शादी ब्याह में भी शालिनी और उसके परिवार की शिरकत कभी नहीं होती थी, वजहें कुछ भी दे दी जाय या स्थितियाँ कुछ भी सृजित कर दी जाय.


माना कि शालिनी सरलमना...उसे सब कुछ स्वीकार्य किंतु विदुषी ने कभी भी पहल नहीं की उसे बराबरी का एहसास दिलाने का.  शालिनी के द्वारा विदुषी की निस्वार्थ सेवा टहल के क़िस्से जब उपन्यास लिखा जाएगा तब विस्तार में. यहाँ बस कुछ उदाहरण  इंगित के रूप में दूँगा. 


जिस शालिनी के ख़ुद के ऊपर मानसिक बौझ होने की बातें विदुषी किया करती थी परंतु उस से छोटे मोटे रूटीन घरेलू कामों में मदद लेने में उसे कोई गुरेज़ नहीं होता था. जो शालिनी इतनी स्वाभिमानी कि कई बार बुलाने पर एक दफ़ा कहीं जाए, मोहतरमा जब पैनफुल माहवारी के दौर में होती तो सदेच्छा के साथ नियम से पौष्ठिक यखनी/सूप बना कर विदुषी के लिए बनाकर ख़ुद उसे देकर आती थी. इसके लिए पीठ पीछे कहा जाता था कि पीछे ही पड़ी हुई है, मना भी कर दिया तो भी ले आती है. शालिनी की परवाह करने की प्रवृति बेमिसाल थी और उसमे ईश्वरियता का पुट होता था. मैत्री और स्नेह को उचित से अधिक मूल्य देना शालिनी  का स्वभाव था जिसका लाभ आदतन विदुषी बेन उठाती रहती थी.


शालिनी इतनी Good Soul थी कि ज़रूरत पड़ने पर मोहतरमा के घर के छोटे मोटे कामों में सहज तौर पर हाथ बँटाने में नहीं हिचकिचाती थी. शालिनी का यह सेल्फ़लेस सेवा भाव निस्संदेह सम्माननीय था किंतु उसके प्रति विदुषी मैडम की अंदरूनी रिस्पोंस अच्छे ज़ायक़े वाली नहीं हुआ करती थी. उसका एटीट्यूड किसी को इस्तेमाल और मानसिक दोहन करने वाला ही था. मुझे विदुषी का यह दोहरा व्यवहार नागवार गुजरता. विदुषी को समझाने की कोशिश की जाती कि यह सब किसी की ऊँची भावना की बेक़द्री है मगर विदुषी बात को घुमा देती. उसका एक्सप्लेनेशन उसको उचित तवज्जो और पार्टिसिपेशन के अवसर देने के मामले में यही होता कि शालिनी कम्फर्टेबल नहीं होगी, जब कि Real Mentor और दोस्त होने के नाते उसे उसको कम्फर्टेबल करना चाहिए था. 


विदुषी की इस Behaviorial Trait में एक Psychology में प्रचलित शब्द "Gas Lighting" का अक्स दिखता था. मनोविज्ञान का कोई भी विद्यार्थी अच्छे से समझ सकता है यह पहलू . पॉइंट आउट करते हुए कभी कुछ कहा जाता तो स्मार्ट विदुषी तत्काल सहमति जता कर बात को वहीं पर ख़त्म कर देती थी. कुल मिला कर यह रिश्ता ऐसे रोग की तरह था जिसमें ना तो रोग ख़त्म होता है ना ही रोगी. 


समर्पण की प्रतिमूर्ति शालिनी शायद इसी में गौरवान्वित होती रहती थी कि वह सब कुछ देखते सुनते समझते और सहते निबाहने में सब से अव्वल है, सामाजिक पारिवारिक रिश्तों में ही नहीं बल्कि इस कथित दोस्ती में भी जो असल में एक प्रतिक्रियात्मक आकर्षण और hollowness का भराव मात्र थी. 


********


(These write ups are the 'Notes' for my proposed novel. विदुषी और अन्य काल्पनिक/वास्तविक पात्रों की चारित्रिक प्रवृतियों/विशेषताओं, उसकी रिलेशनशिप्स और गतिविधियों/घटनाओं को लेकर इस मनोवैज्ञानिक  उपन्यास के कथानक को शेप दी जा रही है. कोई भी व्यक्ति यदि इसमें ख़ुद को आइडेंटिफाई करे यह उसका अपना इम्प्रैशन/आकलन  होगा, यह सब जनरल हैपीनिंग्स होती है जो चारों और घटित होती रहती है.)

No comments:

Post a Comment