Friday, 16 June 2023

क्या प्राथमिक क्या शाश्वत : विजया

 


क्या प्राथमिक..क्या शाश्वत 

++++++++++++++++


द्वय हाथ लगे मुरली को राधा-कान्हा के 

यही तो अंतरंग की भागीदारी 

मात्र बहिरंग पर नहीं हो पाती 

हृदयों की साझेदारी,

आड़ोलित राग रग रग 

सुर समवेत घटित हो मिल रहे 

मोर पंख ज्यूँ दो नयन 

चेतन्य हो कर निरख रहे,

प्रेम की सशक्तता और शाश्वतता में 

देह नहीं आत्मा होती है प्राथमिक 

भौतिक सम्बंध होता है तन के ज़रिए 

घटित होता है मानस से प्रेम आत्मिक,

एकत्व होता है घटित 

मात्र केवल अंतर्मन के तल पर 

क़ुतुबनुमा, पाल और मस्तूल हो मज़बूत 

जहाज़ कर लेता यात्रा जलधि के जल पर...


मचाया जाता है कोहराम 

जिस भावना को प्रेम कहकर 

क्या सचमुच है वह प्रेम 

लगाता है जो जिस्मानी मज़ों का चक्कर,

निक्की-साहिल, मेघा-हार्दिक, श्रद्धा-आफ़ताब 

एक लम्बी सी फ़ेहरिस्त ऐसी मुहब्बत की 

गली नुक्कड़ पर देखते हैं नुमाइश 

ऐसी लफ़्फ़ाज़ी भरी दिखावे की फ़ितरत की,

दावा करते नहीं थकते ये जोड़े 

खाते हैं क़समें सात जन्मों का साथ निभाने की 

कुछ वक्त ही गुजरता है देहाकर्षण में 

आ जाती है नौबत धोखों और बहाने की,

नींव टिकी हो जिन रिश्तों की 

धन, तन, बल और अहम तुष्टि पर 

नहीं होता है प्रेम कत्तई वह 

अस्थायी उत्तेजन निर्भर निरंतर पुष्टि पर...


प्रेम में पड़ना हो गया है 

द्योतक आज की आत्मनिर्भरता का 

एक सनम चाहिए आशिक़ी के लिए 

जुमला बन गया है आधुनिकता का,

किशोर, युवा और उकताये हुए अधेड़ अधेड़न को 

रहती है तलाश रोमांस की चंद घड़ियों की 

अन्तर्जाल और सोसल मीडिया पर भी 

देखी है उड़ाने आज़ाद चिड़ों और चिड़ियों की,

दिशाहीन आकर्षण आरम्भ में 

लगता है ज्यूँ साथ है जन्म जन्मांतर का 

धुमिल हो जाते क़समें वादे 

होता प्रवेश जब बोरियत और मतांतर का,

याद कर पौराणिक आख्यान 

श्री कृष्ण के पावन प्रेम प्रसंगों का 

पा सकते हैं रहस्य हम 

जीवन जीने और सार्थक सम्बन्धों का...


(साहेब याने विनोद जी का धन्यवाद सुझावों और टच अप के लिए. उन्हें उलाहना भी कि कई दिन इस पर बैठे रहे, साथ रहने वालों को तवज्जो कम जो मिलती है)

No comments:

Post a Comment