Friday, 16 June 2023

बचन क्षत्राणी के : विजया

वचन क्षत्राणी के

+++++++++

उतारूँ आरती तेरी 

लगा दूँ तिलक मस्तक पर 

विजय पाओ तुम शत्रु पर 

कामना यह तो मैं  कर लूँ...


पीठ दिखाना ना तुम युद्ध में 

चाहे रणखेत रह जाना 

हार कर रिपु से तुम प्रीतम 

लौट के ना आ जाना...


अमर सुहागन हूँ मैं साजन 

संबंध तो जन्मांतर का है 

चिंता देह की किसको 

प्रश्न आत्मिक अंतर का है..


शांति नहीं है यह 

सन्नाटा जो मरघट का है 

इच्छाकल्पित चिन्तन की 

वास्तविकता आज जतला दूँ...


झूठे साज बाजों से 

हुए है कान अब बहरे 

बजे दुंदुभी समर की अब 

खड़ग की धुन मैं सुन तो लूँ...

No comments:

Post a Comment