Friday, 16 June 2023

स्त्री के प्रश्न : आकृति

 स्त्री के प्रश्न...

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मानव निर्मित संस्था ही तो है विवाह 

जिसे बनाया गया था 

समाज की व्यवस्था के लिए 

नियम-उपनियमों के साथ,

रहा होगा शायद कभी 

कोई खुलापन और लचीलापन...


कालांतर में तो 

ले लिया था सामाजिक रूढ़ियों-रीति रिवाजों ने 

भावना, विवेक और मानवीय पहलुओं का स्थान 

बदल दिया था 

पुरुष प्रधान समाज ने विवाह की रूल बुक को 

समाज और ख़ासकर पुरुषों के हाथ 

स्त्री को कठपुतली बना देने के लिए...


जोड़ियाँ बना करती है स्वर्ग में 

बनाता है जोड़े ऊपर वाला 

मिलता है जिसके भाग्य में जो होता है बदा

अटूट बंधन है शादी, निभाना होता है जिसे आजीवन

घोषित कर दिया गया किसी किसी ने तो इसे 

बंधन सात जन्म का भी,

पुरुष को मिले  स्वतंत्रता और स्वच्छंदता के अधिकार ने 

उसके लिए किंतु खुली रखी सब राहें...


आया है स्त्री के हिस्से

केवल शोषित होना, पिसना, घुटना, परास्त हो जाना 

ज़िंदा लाश बन कर मरते मरते 

थोपे हुए बंधनों  को निभाना

झूठे पैमानों को सच्चा साबित करने 

विवाह की बलिवेदी पर बलिदान होने के नाम 

कट कर बेमौत मर जाना...


प्रेमविहीन विवाह में घुट रही स्त्री के 

प्रश्नों के उत्तर देने की बजाय 

पाया जाता है उसे काढ़ा उपदेशों का

डाल कर पाँवों में बेड़ियाँ 

हाथों में हथकड़ियाँ 

मुँह पर ताला,

बांध कर उसको अनगिनत अदृश्य रस्सियों से ...


पूछती है स्त्री चीख चीख कर

क्या मुझे मन और तन की नैसर्गिक माँगों का हक़ नहीं 

पत्नी और माँ के दोहरे जीवन की खींच-तान में 

अपने लिए भी खोज कर कुछ सुकून पा लेने का अधिकार नहीं 

क्यों निभाऊं उस बेमेल समझौते को 

जिसमें मेरी सहमति की कभी जगह नहीं रही...


जी करता है काट लूँ उन सब उँगलियों को 

उठती है जो मेरी ओर,नैतिकता के शोर के साथ 

जो 'धाये' हैं वो कैसे समझ सकेंगे 

दर्द भूख और प्यास का 

रहस्य देह और आत्मा की अपेक्षाओं का

सच धड़कती साँसो की उपेक्षाओं का...


ठीक ही तो कहा है किसी ने 

तन की हाविस मन को गुनाहगार बना देती है 

बागों की बहारों को भी बीमार बना देती है 

ऐ भूखे प्यासों को नैतिकता और खोखला धर्म सीखाने  वालों 

भूख और प्यास इंसान को ग़द्दार बना देती है...


आकृति सिंह भाटी


(तराशने के लिए विनोद सिंह सर का आभार🙏)

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