महिला दिवस विशेष
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विदुषी का विनिमय सीरीज़
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द्रौपदी
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हमारे मनोविश्लेषक साथी कहा करते थे कि उसके बोले और लिखे शब्द उसके उस समय के इरादों और सोचों की चुग़ली खा जाते हैं. उसके जुमले बदलते रहते थे,कभी परम्परावादी तो कभी उदार, कभी कर्तव्यबोध लिए आज़ादी की हिमायत तो कभी विद्रोह-कभी अराजकता, कभी सात्विक-कभी राजसिक-कभी तामसिक, कभी अनुशासन कभी स्वच्छंदता. हाँ एक बात कोमन होती थी-"किए हुए को जस्टिफ़ाई करने की कोशिश या जो करना है उसकी भूमिका बांध देना".
व्यवहार में बदलाव मानवीय है लेकिन कहीं एक यूनफ़ॉर्म मौलिक सूत्र को लिए क़रीब क़रीब व्यवहार सम्पादित होता है जिसे हम consistency कह देते हैं और कहीं तो Sea Saw जैसा कभी ऊपर कभी नीचे और कहीं कहीं तो बिलकुल unpredictble. कुछेक लोगों का कोई value base होता है तो कुछ जब जो favorable या suitable हो उस से गुजरने में ही लगे रहते हैं.
मैं चूँकि मनोविज्ञान के अलावा दर्शन पृष्ठभूमि से भी था, मैं हमेशा कहता स्त्रीमन की इतनी पर्फ़ेक्ट व्याख्या करना ठीक नहीं. बहुत कुछ अनकहा भी तो होता है कोमल मन में. बहुत से भोगे हुए यथार्थों की प्रतिक्रियाएँ होती है जीवन में. हमारा अनचाहा या थोपा हुआ जीना भी ना जाने कितनी ग्रंथियों को उत्पन्न कर देता है जिन्हें दायरों में जीने के क्रम में सहज सुलझाना अति कठिन हो जाता है.
हाँ तो उन दिनों उसके दो जुमले परवान पर थे. बार बार कहा करती थी कि भारतीय एपिक्स में मेरा मोस्ट फ़ेवरिट किरदार द्रौपदी है और दूसरा मेरी तो पहली पसंद गाना है कविताएँ ग़ज़ल लिखना तो सेकेण्डरी. मैं मुस्कुरा देता क्योंकि आदर्श स्वरूप जैसे द्रौपदी का नाम उसके लबों पर आता था वैसे ही राधा, मीरा, अमृता आदि कई नाम भी आते रहे थे और गतिविधियों में भी लेखन,पठन, भ्रमण, विमर्श, spirituality, गृह सज्जा, कलनरी, गार्ड्निंग आदि पहले स्थान पर घोषित किए जाते रहे थे...ये सब प्राथमिकताएँ अपनी अपनी अल्प अवधि तक जीयी भी गई थी. मेरे जाने ये सब हमारे व्यक्तित्व के अंग होते हैं एवं साइकलॉजिकल ट्रेट्स के दर्शाव होते हैं. उन के आधार पर कुछ भी चुनिंदा राय क़ायम कर के किसी को भी कटघरे में खड़ा कर देना कत्तई उचित नहीं कहा जा सकता. बहुत दफ़ा हमारा जजमेंटल होना opinionated या prejudiced होने का प्रतिफल भी होता है ना ?
मेरे जाने, जजमेंटल होकर ग़लत सही का लेबल नहीं चस्पाँ किया जाना चाहिए. जो है उसे यदि यथारूप साक्षी हो कर देख लिया जाय तो अपना मानसिक सिस्टम खुद ब खुद फ़ैक्ट्स और बियोंड फ़ैक्ट्स को प्रोसेस कर लेता है.
चलिए ज्ञान गुफ़्ता यही छोड़ कर कहानी की तरफ़ बढ़ते हैं.
(१)
हाँ तो उन दिनों विदुषी के जीवन में एक नई एंट्री हुई थी एक शख़्स की जो शौक़िया गायक कलाकार था इसलिए "गाना" विदुषी जी की पहली पसंद होने लगी थी और विषय एक या ज़्यादा पुरुषों के साथ दोस्ती का था इसलिए द्रौपदी किरदार की पसंदगी टॉप लेवल पर थी.
वाक़ये बहुत हुए हैं दोनों के परिचय से घनिष्टता के फ़ास्ट ट्रेक सफ़र के, उन पर कभी अलग अलग चेप्टर. आज एक होली के प्रसंग पर बात करते हैं. क़िस्सा सुनाने में फ्लो आए इसलिए हमारे गायक जी को अब हम सोम कहकर पुकारेंगे.
सोम सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठान में मैनेजर लगा हुआ था. जब विदुषी से परिचय हुआ था तो उसकी पोस्टिंग विदुषी के क़स्बे में ही थी. कुछ माह बाद सोम का ट्रान्स्फ़र वहाँ से कोई दो अढ़ाई घण्टे की डिस्टेंस पर एक दूसरे क़स्बे में हो गयी थी. सोम के बीवी बच्चे किसी महानगर में रहते थे और सोम अकेला ही अपने वर्क प्लेसेज पर व्यक्तिगत कारणों से रहा करता था.
उसके वर्क प्लेस से महानगर की दूरी कोई छह घंटे थी. तीज त्यहारों पर कई दफ़ा वह अपनी कार से ड्राइव करके अपनी फ़ैमिली के पास चला जाता था. उस बार की होली के लिए उसके प्रोग्राम में एक स्टोपेज़ जोड़ दिया गया था. बंदा डेढ़ दो घंटे की ड्राइव करके विदुषी के बंगले तक आएगा, डिनर वहीं फिर गेस्ट रूम में रात भर आराम और फिर सुबह कोई आठ बजे महानगर को रवानगी और कोई चार-पाँच घंटे का सफ़र. यह ब्रेक ज़रनी किसी भी तरह लोजिकल नहीं थी. मगर विदुषी की इस नए रिश्ते की यह पहली होली और उसे वह सोम की बीवी से पहले खुद उसके साथ मनाने की इच्छुक थी, इसीलिए उसने भरपूर "projections" करके मैनेजर सोम को मेनेज जो कर लिया था.
दरमियानी नौकरी करने वाले सोम ने दबी ज़ुबान से कहा था : "विदुषी जी यह रिस्की है." विदुषी ने कहा था, "इश्क़ में रिस्क उठानी होती है, सोम जी. तुम्हें बस वही करना है जैसे जैसे मैं कहूँ, बाक़ी सब मैं हेंडल कर लूँगी."
बहुत साहसी, ना ना दुस्साहसी प्रानी थी Dare Devil विदुषी. जो भी ठान ले उसको साम, दाम, दंड, भेद सभी तरीक़ों से अंजाम दे ही देती थी, उसका ट्रेक रेकोर्ड था.
डिनर टाइम तक सोम विदुषी के बंगले पर था. अपने सीधे साधे हब्बी के साथ सोम का सेमी दोस्ताना टाइप्स ताल्लुक़ बड़े बारीक ढंग से क्रीएट करा ही चुकी थी वह, और सोम को रात का सफ़र नहीं करना चाहिए इस थ्योरी को भी अपने वाक चातुर्य से बखूबी बेच चुकी थी.
ड्रॉइंग रूम में डिनर के बाद गाने की महफ़िल जमी. सोम ने जगजीत की इस ग़ज़ल को गुनगुनाया था, "होठों से छू लो तुम, मेरे गीत अमर कर दो." विदुषी ने अपनी फ़ेवरिट, "आज जाने की ज़िद ना करो" को गाया था...और हब्बी साहेब देश के हालातों और फ़िल्मों के तकनीकी पहलुओं पर बेतरतीब अखबारी क़िस्म की तक़रीर कर रहे थे साथ साथ आदतन मोबाइल पर तीन पत्ती" गेम खेलते खेलते.
"गुड नाइट" हुई और अपने अपने रूम्स में सभी चले गए थे.
(२)
सूरज की पहली किरण ज़मीन पर पड़ी थी. फगुआ की मस्त मादक पवन चल रही थी. बंगले के सामने वाले लॉन नुमा गार्डेन में हरियाली थी और फूल खिले हुए थे. बसंत अपने पूरे यौवन के साथ विराजमान था. विदुषी और सोम झूले पर बैठे दार्जीलिंग चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे और प्रफुल्लित तन मन को सेल्फ़ियों में क़ैद किए जा रहे थे.
हब्बी साहब बहुत गहरी नींद सो रहे थे, ना जाने क्या हुआ उनकी अब तक आँख ही नहीं खुली थी.
विदुषी ने सोम को हग किया, तृप्त और प्रसन्न मुद्रा में, "हैपी होली" का आदान प्रदान ज़ुबान और नज़रों से हुआ. सोम स्टीयरिंग व्हील पर था और "बाय-बाय" "टेक केयर" के साथ कार आगे बढ़ गयी थी. विदुषी की विजयी नज़रें जाती हुई गाड़ी का कुछ मिनट्स पीछा कर रही थी.
(३)
विदुषी ड्रॉइंग रूम से आधी पढ़ी प्रतिभा राय की पुस्तक "द्रौपदी" उठा लायी थी. प्रतिभा राय ने अपने इस उपन्यास में द्रौपदी के स्त्री पक्ष और रिश्तों की तह में जाकर कथानक को कुछ अलग सा गढ़ा है. मर्दों के युद्ध वर्णन के लिए बस चार छह पेज ही दिए हैं बाक़ी सब द्रौपदी पात्र के माध्यम से स्त्री मन के विभिन्न आयाम दिखाने में इस्तेमाल हुए थे. यह स्त्रीवादी सशक्त लेखन का अभिनव प्रयोग था.
सोच रही थी वह द्रौपदी को.
उसे तो कृष्ण को समर्पित होना था तभी तो नाम करण हुआ था उसका कृष्णा...हर मोड़ पर कृष्ण ने उसका साथ दिया लेकिन जैसी चाहना थी वैसे साथ कब हो पाए.
द्रौपदी के जीवन का निर्धारण पुरुषों और उनके द्वारा सृजित परिस्थितियों ने ही तो किया था. उसे एक मक़सद जैसे पकड़ा दिया गया था "कौरवों का नाश". उसकी बचपन की मासूमियत की धारणा बिखर जाती है जब द्रुपदों और कौरवों की लड़ाई में उसे सिर के बल फेंक दिया जाता है. स्वयंवर में उसका मन कर्ण पर आता है किंतु उसके भाई द्वारा उसके सपनों को कुचल डालना -आधार कर्ण के माता पिता की कथित निम्न जाति. उसे कृष्ण का आश्रित अर्जुन जीत लेता है. वह तड़फ़ती है कर्ण के लिए किंतु शादी अर्जुन से. हाँ कृष्ण की कुछ झलक वह अर्जुन में देख कर अपने मन को समझाती है लेकिन उसे सभी भाइयों के साथ वैवाहिक रिश्ते के लिए मजबूर किया जाता है, यहाँ तक कि कृष्ण भी उसे इस सिलसिले में त्याग और आदर्श का उपदेश दे देते है याद दिलाते हुए कि तुम्हारे जन्म का तो एक ही मक़सद कौरवों का नाश. जुआरी पतियों द्वारा उसे हार जाना और कौरव राज दरबार में उसके पतियों और बड़े बड़े दिग्गज पुरुषों की उपस्थिति में दुष्पुरुष दुशासन द्वारा चीर हरण की दुश्चेष्टा...
शायद सोचों का सफ़र कुछ देर और चलता लेकिन अजीब मगर जानी पहचानी आवाज़ों ने उसको सोचों की उड़ान से फिर ज़मीन पर ला दिया. उसके हब्बी तैय्यार हो कर नीचे आ गए थे और उसे उनके लिए टोस्ट और आमलेट बनाना था.
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