तपिश
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तप रहा है आसमाँ
सूख गई है ज़मीन
सब कुछ है लुटा लुटा सा
पड़ गई है गहरी दरारें
ना जाने पाटी जाएगी कैसे ?
ऐ आँधी !
उखाड़ दे ना गर्मी को
चीर डाल इस तपिश को
उड़ा दे इन चीथड़ों को
ना जाने बदलेगा ये मौसम कैसे ?
नहीं गिर पा रहे हैं फल
इस सघन हवा में
किए जा रही है तपिश
आड़ुओं की नोक को कुंद और अंगूरों को गोल
आख़िर यह सताना मिटेगा कैसे ?
ऐ आँधी !
चला दो हल बीच से इसके
बाँट दो इसको दोनों तरफ़ रास्ते के अपने
आ जाएगी फिर बारिश झमाझम
होगा ख़ात्मा सब मुश्किलों का ऐसे...
Inspired by HD
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