Wednesday, 8 June 2022

अक्षय पात्र...

 


अक्षय पात्र...

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गहरे तक 

अपने ही भीतर

लगाते हैं जब गोता 

समझ पाते हैं हम 

अपने उस पहलू को 

जो होता है विद्यमान हमेशा 

और बदलता नहीं 

यही है स्व 

जो जड़ है हमारी 

सारतत्व हमारा...


नहीं होते हैं हम 

विचार अपने 

बस जानते हैं हम 

अपने विचारों को 

नहीं होते हैं हम 

भाव और संवेग अपने 

बस करते हैं महसूस 

अपने भावों और संवेगों को 

नहीं होते हैं हम 

देह अपनी 

बस देखते हैं आइने में 

अक्स उसका 

और करते हैं उसके द्वारा 

अनुभव संसार का

अपनी इंद्रियों के ज़रिए,

हम होते हैं होशमंद प्राणी 

होता है जिन्हे होश 

अंतरंग और बहिरंग का...


सारतत्व हमारा है 

एक अक्षय पात्र

होता है जो 

भिन्न सर्वथा 

हमारे परिवर्तनशील और क्षयशील

स्वरूप से....

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