आग सावन की
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भीगे तन
भीगे मन
भीगे नयन,
होता है तरल ईंधन
रंगहीन गंधहीन
ठंडा ठंडा लगता
कहलाता है जो पानी
सावन रूत में बरसा
किंतु लगा देता है अगन
जल जल जाते
तन, मन और नयन.
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