Friday, 21 July 2023

नज़रिया : विजया

 नज़रिया 

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एक घड़ा 

जल से भरा 

एक कटोरी 

घड़े को ढके,

दोनों ही अर्थपूर्ण 

दोनों का ही काम 

महत्वपूर्ण...


घड़ा जानता था 

बहुत ही अहम है 

कटोरी का रोल 

वह ना हो तो 

जल में हो जाए 

रोलम पोल...


घड़ा भी जल संग्रह कर 

औरों की प्यास बुझाता था 

ख़ाना बनाने के लिए 

शुद्ध पानी मुहैया कराता था...


कोई किसी ने 

लगाया होगा पलीता 

कुछ रही होगी 

कटोरी की  स्वयं की 

श्रीमद्भ्रमगीता...


कटोरी को ना जाने क्यों 

आ गया था 

हीन भाव एक दिन 

मैं क्यों रहती हूँ हमेशा 

जल बिन...


बोली थी कटोरी उस दिन घड़े से 

आता है प्रत्येक बर्तन 

जो भी पास तुम्हारे 

भर देते हो उसे 

शीतल नीर से बिना कुछ बिचारे...


बोली : तुम्हारा रवैया है 

पक्षपात भरा 

याद है क्या, तुम ने कभी भी 

मुझे जल से भरा...


सुन कर बात कटोरी की 

घड़ा था मुस्कराया 

उसकी मंद मुस्कान देख 

कटोरी का पारा था चढ़ आया...


तुम ने ना देकर जवाब मेरे सवाल का 

हंसी मेरी है उड़ाई 

होकर आग बबूला 

कटोरी थी चिल्लायी...


मैने ना तो किया पक्षपात 

ना ही तुम्हारी हंसी उड़ायी 

ज़रा सोचो और देखो ध्यान से 

समझो बात की गहराई...


जो भी बर्तन आता है पास मेरे 

पाने को दान जल का 

झुकता है होकर विनीत 

नहीं करता है दंभ पल का...


तुम हो कि होकर चूर गर्व से 

मेरे सिर पर ही डटी रहती हो 

क्यों झुकूँ मैं नीचे 

बस इस ग़ुरूर में फटी रहती हो...


नीचे उतर देखो तनिक झुक कर 

भर जाओगी तुम भी शीतल जल से 

होकर परिपूर्ण एक दफ़ा 

शायद तुम्हें ना होगी शिकायत मुझ से...


अपने को भूल कर 

करना तुलना औरों से 

है निशानी हीन भावना की 

तू मेरी रक्षक मेरी सरताज 

संगिनी मेरी चाहना की...

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