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दोस्ती उस से भी पहले की है और आज भी वही प्राथमिक है .हाँ आज से ५२ साल पहले हम दोनों के रिश्ते पर समाज और परिवार की मुहर लगी थी. ये पाँच दशक सब रंगों से भरे रहे और अब भी जारी है. कुछ लिखा उसे "साहेब" को डेडिकेट कर रही हूँ. आप सब का साथ बहुत मोटिवेटिंग है.
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सुहानी हरियाली
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हरा है रंग कुदरत के जन्म का
घूमता है जीवन इन्ही रंगतों के चहूँ ओर
प्रिय ! चले आओ
और ले लो टुक महक
इस कोमल शबनमी दूब की...
याद है ना तुम्हें
गर्मियों के वो दिन
हम दोनों होते थे खुले आकाश तले
और दिखते थे हमारे नाम लिखे हुए बादलों पर
अटूट और अनसुने, हम एक ही तो थे
ढूँढ लिया था चैन और सुकून हमने अपने लिए
इस खूबसूरत और अलग सी दुनिया में...
ख़ुद में एक जश्न थी
कुदरत की दरियादिली
और चारों जानिब फैली हुई हरियाली
कितना आनंद था
खुली घाटियों और पहाड़ियों में दौड़ने में
बढ़ जाता था जो और
बारिश के बाद आकाश में उभरे इंद्रधनुष से
वो प्यार भरे आग़ोश और दर्द का काफ़ूर हो जाना
बहुत से बूटे और अनगिनत ख़ुशबूएँ
कर देती थी प्रफुल्लित मेरे संवेद और संवेगों को
याद करो उन सुहाने दिनों को
कितना जवान मस्त और अल्हड़ था
जीवन हमारा
घूमा करता था जो इर्द गिर्द पेड़ों के...
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