अक्स
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ऐसा ही अक्स कुछ देखता था मैं
जब हाथ में हाथ लिए
सड़क पार किया करते थे हम
तुम्हें इमली, लपसी और हलुआ बेर पसंद थे
तो मुझे गोंदपाक, लालमोहन और छुरपी
साझा ही ख़रीदते और खाते थे
ज़्यादा हिस्सा होता था
खाने में मेरा और खर्चने में तुम्हारा...
ना जाने कब फ्रॉक
सुनहरी पट्टी वाली साड़ी में बदल जाती थी
हरा मख़मली जंपर
टीस्यू सिल्क की किरमची साड़ी
कानों में झुमके
गले में ख़ानदानी हार
नाक में बाली
आँखों में काजल
अधरों पर लाली
भाल पर बिंदी
केशों को यूँ ही समेट कर लगाई
गुलाबपत्तियों से बनी वेणी
गरिमा भरा आभामंडल
गहनता के स्पंदन...
याद है ना
बाबर महल* की दीवार पर लगी
राजा रवि वर्मा की वह पेंटिंग
दिलों में बस गई थी
तुम अपलक उसे देख रही थी
और मैं तुम को
हम दोनों ही बिन बोले
खुली आँखों से एक सपना देख रहे थे
इस बात से नितांत अपरिचित
कि स्त्री-पुरुष प्रेम क्या होता है
बस यही मालूम था और महसूस भी होता था
साथ साथ जीना ही ज्यूँ सर्वोपरि
यह एहसास तब भी था और आज भी है
परिभाषाओं को जीते हुए भी उनसे परे भी...
कितने ही दशक का सफ़र
कर आये हैं हम पूरा
जारी है आज भी
साथ चलते रहने का यह ख़ुशगवार सफ़र
सब कुछ का बदलते रहना कुदरतन है
मगर इन सब के बीच
ना बदली है तो एक सच्चाई
बचपन, जवानी, मध्य वय, वरिष्ठता
विपन्नता-संपन्नता, दूरियाँ-नज़दीकियाँ
कभी ना रोक पाती है
मुझे तुम में यह अक्स देखने से...
*नेपाल का राणा महल जो काठमांडू में बागमती नदी के उत्तर में स्थित है.
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