Sunday, 21 June 2020

पिघल जाएँ : विजया



पिघल जाएँ...
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तो
कुछ ऐसा हो गया ना
आज
चाँद ने ढाँप लिया
सूरज को
और मावस की रात हो गयी
दिन में,
नहीं रहना है हमें
तुम और मैं,
भूल कर अपना वजूद
आ जाओ ना
पिघल जाएँ हम
संग संग
पिघल जाती है जैसे परछाईयां
घने अंधेरे में,
फिर बहते हुए जा पहुँचे हम
उस जहाँ को
जो है
सितारों से आगे....

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