Thursday, 18 June 2020

ख़ूबसूरती हमारी उम्र की,,,


ख़ूबसूरती हमारी उम्र की,,,,
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बढ़ती है जैसे जैसे
उम्र हमारी,
होती है नुमाया
ख़ूबसूरती इक नई
हमारी जंग और मोरचे की कहानी से,
होती है आश्कार
बालीदगी हमारी
बाहिर के निशानों और टूटन से,,,

मानिंद हैं एक आर्ट पीस के हम
बेशकीमती और अद्भुत,
नहीं है अब हम
मासूम ओ नादान
दुनिया को जानने और समझने में,
बढ़ रहा है मोल हमारा
हर सबक़ के साथ जो
सिखाते हैं लोग हम को,,,

नहीं पाया हमने
हिसाब नौजवानी का
उम्र की रियाज़ी में,
बसता है जमाल बखूबी
देखने वाली नज़र में,
होती है जवानी
एक तर्ज़ दिलो ज़ेहन की,
हुआ नहीं कोई बदलाव
एहसासों के महसूस होने में,,,

कुछ भी कहिए
आ गया है वक़्त अब
करने का अपने मन का
जो भी हो मुनासिब,
जीने का अपनी शर्तों पर
हो कर बेपरवाह
क्या कहेगा कोई,,,

नहीं हैं अब
जकड़ने की कोशिशें
रेत को अपनी मुट्ठी में,
जो रहे क़ायम
एहतिराम उनका
जो फिसल फिसल जाए
अलविदा उनको
नैक ख़्वाहिशात के साथ,,,

(नुमाया=स्पष्ट/obvious, आश्कार=स्पष्ट/visible, बालीदगी=विकास/growth, मुनासिब =उचित,रियाज़ी=गणित,जमाल=सौंदर्य,
तर्ज़=शैली/ढंग,एहतिराम=सम्मान, नैक ख़्वाहिशात=शुभकामनाएँ)

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