सार्थक यात्रा,,,
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सीखा है गिर गिर के
चलना और दौड़ना मैं ने
चोटें खा कर जाना है
सम्भलना मैं ने
अस्तित्व की यात्रा में
घाट घाट का पानी
पीया है मैं ने,
सफल हुआ या असफल
पैमाने ये सापेक्ष दुनिया के
बचकर विवादों से
जाना अजाना
समझ लिया मैं ने,,,
नहीं है क्षुद्र झगड़े अब
मेरे जीवन का एक हिस्सा
प्रलाप होता जो मेरे ख़ातिर
करुं नज़रंदाज़ हर किस्सा
मात पिता स्वजनों से
छोड़ दिया लड़ना मै ने,
नहीं करता संघर्ष अब मैं
लिए लालसा औरों के ध्यान की ,
स्वअधिकारों हेतु नहीं भीड़ता
भीड़ से आग्रह और अज्ञान की
छोड़ दी जद्दोजेहद मैं ने
औरों की अपेक्षा पूर्ण करने की,,,
नहीं करता मैं उठापटक
ख़ुश औरों को रखने की
नहीं करता हूँ क़वायद
पूर्वाग्रह औरों के साबित करने की
सच कहूं दिया है त्याग
बेमानी युद्ध लड़ना मैंने,
बच सकूँ मैं ताकि
वृथा ऊर्जा क्षय करने से
जुट सकूँ ताकि
सार्थक यात्रा देह-दिल-आत्मा से,
मक़ाम हो जिसके
मेरी दृष्टि और मेरे स्वप्न
मेरा चिंतन और मेरा प्रारब्ध
भाव मेरों को मिल पाए
क्या आज यथोचित शब्द ???
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