बैठे रहे चौखट पर...
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संगे मरमर के मुजस्समे को
खुदा मोहब्बत का
हमने बना डाला
उस बेजान बेहिस से क्यों
इजहारे इश्क़
हमने कर डाला...
मर्द तो है दरवाज़ा यक महज़
रोक देता है बाहिर जाने से
टोक देता है भीतर आने से
बैठे रहे चौखट पर
जिसे हमने चूम डाला...
कहते हैं वो बस एक बेल तुम हो
दीवाल मैं हूँ सहारा हूँ तेरा
ख़ूबसूरत बना उसे ढक कर
सौदा इस वुज़ूद का
हमने जो कर डाला...
फ़र्क़ जात ओ वुज़ुद का समझने में
देर बहोत हो चुकी थी शायद
माँगते रहे यक इन्सां से मुससल
अल्लाह को ना जाने क्यों
हमने भूल डाला....
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1. Meanings :
मुजस्समा=मूरत, पुतला.
बेजान=निर्जीव, बेहिस=संवेदन शून्य
जात=स्व, वुजूद=देह
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Explantory Note : जात और वुज़ूद दोनों को ही अस्तित्व कह देते हैं मगर इस्लामी दर्शन में इनके मायनो में बारीक फ़र्क़ किया जाता है जात का ताल्लुक़ अल्लाह से और वुज़ुद का इंसान से.
ऐसा समझा जाता है. ज़ात पहचान है आपकी जो आप दुनिया में लेकर आते हैं अपने साथ माँ की कोख से और वुज़ूद दुनियावी है जो एक दिन दफ़न हो जाना है मिट्टी में.
वुज़ूद का काम माँगना है..वुज़ूद भिखारी है जब की ज़ात सिर्फ़ देती है..जात भिखारी नहीं हो सकती.
मोटे तौर पर आत्मा और देह से समझ सकते हैं ज़ात और वुज़ुद को.
(दर्शन सम्बन्धी निर्वचन/विवेचन में साहेब याने Vinod Singhi ने मदद दी है, शुक्रिया उनका.😂)
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