Friday, 21 June 2019

तरह तरह के चेहरे,,,,,,,


तरह तरह के चेहरे,,,
############

लिखा है मेरी क़िस्मत में
देखूँ मैं असली चेहरे
चलता हूँ साथ लेकर
तरह तरह के कई चेहरे,,,,

एपिसोड -१
********

जसुदा,,,
#####
पहनाया था मुखौटा ऐसा
बना कर औलाद किसकी
देखी जो हक़ीक़त
ज़मीं पावों तले थी खिसकी,,,,

पहने माँ बाप के चेहरे
दम भरते थे जो ममता का
ख़ुदगर्ज़ मकसदों से
करते थे हिसाब गुजश्ता का,,,

देखा किया वहीं पर
एक चेहरा था खुदा सा
जो अंदर वही था बाहिर
कुछ भी न था जुदा सा,,,

उस मूरत जसुदा की ने
अपनाया था यक ग़ैर को
उसी का था ये जो माद्दा
पाला था किसी शेर को,,,,,

असली नक़ली की बातें
कौन जानेगा उस से बढ़ कर
दुनिया को देखता वह
अस्प अपने ही पे चढ़कर,,,,

गजश्ता=विगत, अस्प=घोड़ा

स्क्रीन...

स्क्रीन,,,,,
#####
मैं,
स्क्रीन मल्टीप्लेक्स का,
कर लेता हूँ तस्लीम
जस का तस
हर रंग, किरदार और कहानी को,
रहता हूँ मगर सफ़ीद ओ सुकूनज़दा
हर खेल के दरमियाँ और
ख़त्म हो जाने के बाद भी,,,,

तस्लीम=स्वीकार

स्वयं स्वयं को बूझ गया,,,,,



स्वयं स्वयं को बूझ गया,,,,,
############
जब जब टूटा सूत्र मेरा
गाँठे दे दे कर जोड़ लिया
जटिल ग्रंथियों में बंध कर
'मैं सूत्रधार' ,मैं उलझ गया,,,,,,

अँधियारों में था भटका
झाड़ झंकाड़ में फंसा था मैं
चोटें पत्थरों की ख़ूब सही
फिर रस्ता अपना सूझ गया,,,,,

निरपेक्ष नहीं कुछ जीवन में
सापेक्ष सत्य है जीवन का
चुनना जब छोड़ दिया मैंने
भेद मैं सारे समझ गया,,,,,

रिश्ते नाते दुराव लगाव
थी सीमाएँ सब की अपनी
जब से असीम से जुड़ पाया
स्वयं, स्वयं को बूझ गया,,,,

ख़ूबसूरती रिश्ते की,,,,(अनुवाद)


========
जार्ज एलीयट की एक रचना का हिंदी भवानुवाद मेरे द्वारा

ख़ूबसूरती रिश्ते की ,,,,
###########
आह ! चैन
नाक़ाबिले बयां सुकून
महफ़ूज़ महसूस होने का
संग किसी के,
ना सोचों को तोलना
ना ही लफ़्ज़ों को मापना
बस उँडेल देना उन्हें बिलकुल
जस के तस,,,
एक ही साथ भूसा और अनाज
पक्के भरोसे के साथ
कि संग में है कोई हाथ
फटक पछार लेगा उनको,
रख लेगा वह उसको
जो होगा रखने लायक़
और उड़ा देगा बचे खुचे को
हमदिली की साँसों के साथ,,,,

                       -जार्ज एलीयट
मूल कविता :
~~~~~~~
Beauty of Relationship,,,,
#############
Oh ,Comfort
the inexpresiible comfort
of feeling safe with a person;
having neither to weigh thoughts
nor measure words,
but pouring them all right out
just as they are -
chaff and grain together
certain that a faithful hand
will take and sift them,
keep what is worth keeping
and with a breath of kindness
blow the rest away.
   
                   - George Eliot

Tuesday, 18 June 2019

पत्थर भी तुम मोम भी : विजया



पत्थर भी तुम मोम भी..
++++++++++++

मौन भी और स्वर भी
मानव हो और ईश्वर भी
स्थिरता हो और गति भी
भाव भी और मति भी
देह सम्पूर्ण और रोम भी
पत्थर भी तुम मोम भी.....

विराग के भाव
अनुराग की अभिव्यक्ति
विनम्रता कोमलता
अपरीमित शक्ति
सूर्य भी तुम सोम भी
पत्थर भी तुम मोम भी.....

सागर से गहरे और ठहरे
नदी से कल कल बहते
छुई मुई से नाज़ुक
वट वृक्ष से सब सहते
धरा भी तुम व्योम भी
पत्थर भी तुम मोम भी.....

Monday, 10 June 2019

वहम ज्ञान का,,,,,



वहम ज्ञान का,,,,,
#######
होता है वहम
जानने का
जितना अधिक
जानते हैं सचमुच
हम उतना ही कम,,,,,

होते हैं हम
जब भी गर्ववंत
हमारी शानदार शोधों के लिए
आधारित हमारे एकांगी ज्ञान पर,
आन खड़ी होती है तुरंत
हमारी अनभिज्ञता
कहते हुए :
क्षमा करना मेरे मित्र !
अभी तो चलना है तुम्हें बहुत दूर
अलग है यह
कर देते हैं हम
अनदेखा उसको,,,,

करते जाते हैं
निरूपण
किसी भी व्यक्ति,घटना या परिस्थिति का
अपनी सीमित दृष्टि और बोध से,
नहीं कर पाते हम आकलन
उन अनगिनत पहलूओं का जो
होते हैं प्रछन्न हमारे
अज्ञान के पर्दे में,,,,

होती है ज्ञान की यह अपर्याप्तता
ना केवल बहिरंग के लिए
हुआ करती है अवश्य
हमारी यह कमी
अंतरंग के लिए भी,
पकड़ लेते हैं ना जाने क्यों हम
बस किसी एक ही तथ्य को
छोड़ कर दूसरे तीसरे, चौथे को,
सच तो यह है
सजगता, स्पष्टता व समग्रता का अभाव
भरमा देता है हमें
उलझा कर एकांगी भेदों में
भटक जाते हैं हम राह
बाहर कहीं पहुँचने की
अंदर कहीं लौट आने की,,,,

ज़िम्मेदारी : विजया




ज़िम्मेदारी....
++++++
करती हूँ महसूस
तुम्हारे लिए मेरे प्यार को
फ़रोगे जलवा मुसल्सल,
जी रही हूँ मैं तुम्हारे लिए
उस दूब की मानिंद
निभाती है जो बदस्तूर
ज़िम्मेदारी अपनी
खुद ही क़ुदरत हो कर
देते हुए चैन ओ ठंडक
ज़मीं को
लगातार ढके रख कर उसको
अपने पूरे वजूद से,
यह बढ़त मेरे प्यार की
बना रही हो जैसे
जीवंत और ख़ुश तब'अ
हर लम्हा तुम को...

(फ़रोग़=वृद्धि/तरक़्क़ी/growing, जलवा=तेजोवलय/brilliance, तब'अ=स्वभाव/nature)

कहानी नई : नीरा


कहानी नई...
********
आ कर लें
एक वादा
उचटी हुई नींद से
आ कर लें यह सौदा
उस से,
मुलाक़ात होगी
अब ख़्वाब में
गहरी डूबी रात में ...

महसूस करें
लाली सुबह की
गले लगा कर
धूप सुहानी,
आ हम दोनो चलें
मिला कर
क़दम से क़दम
थाम कर हाथ
एक दूजे का...

चलो करें शुरू
हम तुम
एक कहानी नई
भूला कर
पिछली सब बातों को...

❤❤

Neera

साझी ग़ज़ल : विजया



साझी ग़ज़ल
+++++++

सीखने होंगे सलीक़े होश ओ जोश जीने के
गाफ़िल को जीने की अभी सौग़ात बाक़ी है.

कसर छोड़ी नहीं तुम ने मुझे यूँ आज़माने में
सितम होते गये बरपा मगर जज़्बात बाक़ी है.

होगी सहर तो हो जाएंगे ख़ुद ब ख़ुद रुख़सत
बरसने दें ख़यालों को अभी तक रात बाकी है.

चल दिए तुम छोड़ कर बाज़ी अधूरी को
शतरंज सी ज़िंदगी में शह ओ मात बाक़ी है.

भगा दिया क्यों पीट कर ग़ुस्ताख़ बंदे को
बेशर्म तो कहता गया कि लात बाक़ी है.

_______________________________

नोट :

1. पहला और आख़री शेर साहेब याने विनोद जी का, तीसरा मुदिताजी का..दूसरा और चौथा मेरा. ये शेर प्रीति की ग़ज़ल पर
कमेंट्स के दौरान emerge हुए हैं.😊.

2. थोड़े बहुत changes मैंने, साहेब की मदद से साधिकार कर दिए हैं.😊😊.

स्वतंत्रता,,,,,,



स्वतंत्रता,,,,,,
#####
कंपायमान है विचार मेरे
प्रयास में हूँ
पाने को अपनी ही शांति को,
पीता हूँ अपने ही आँसुओं में
घोलकर भय और असमंजस के शब्दों को
किंतु सोचता हूँ ऐसे में और अधिक मैं
स्वतंत्रता को,,,,

देख रहा हूँ चेहरा
एक किशोरी  का
बँधे थे हाथ जिसके,
भयभीत भी थी वह वीर बाला
किसी अजाने से भय से
कहते हैं निरक्षर थी वो मलाला
नहीं जानती थी वो
शाब्दिक परिभाषा स्वतंत्रता की
किंतु वास्तविक स्वतंत्रता ही तो था
उद्देश्य उसका भी,,,,,

संघर्षरत है हर कोई पाने को स्वतंत्रता
बिना समझे अर्थ ,
बिना हुए स्पष्ट
स्वतंत्रता के लिये,,,,

किसलिए हों हम स्वतंत्र....

मनचाहे ढंग से प्रेम करने के लिये ?
मनचाही पूजा और प्रार्थना के लिये ?
बुराई और घृणा से ?
या है क्या इस का आशय
बस समान दिखने से ?

क्या बना कर रख दिया गया है
स्वतंत्रता को
महज़ एक मतिभ्रम ?
या स्वतंत्रता है एक नया नाम
आज की ग़ुलामी का ?
या एक प्रतीक
ग़ैर ज़िम्मेदारी और बेपरवाही का ?

होता है मुझे कभी कभी महसूस
ज़रूरत है देखने और सोचने की इसको
एक नये नज़रिये से,
ज़रूरत है हमें समझने की
करना क्या होगा
पाने को वास्तविक स्वतंत्रता ?
जो करती है मुक्त
बहिरंग से कहीं अधिक अंतरंग को,,,,,

Sunday, 2 June 2019

खुले हैं दरवाज़े : विजया


खुले हैं दरवाज़े....
++++++++
चाही थी तुम ने :

एक जगह मोहब्बत की
दूर हो जो खता ना बक्सने वाली
शदीद जिन्सी ख्वाहिशें की
आतिश से,
एक जगह जुड़ाव की
परे हो जो रिश्तों को गाँठों में
बाँधने वाले रस्सों से,
एक जगह रजा मंदी की
दूर हो जो कट्टर फ़ैसला साजी की
टेढ़ी नज़रों से,
एक जगह आज़ादी की
परे हो जो नेकी बदी के
बेहूदा भेदों को जताती
समाजी किताबों के सफ़ों से,
एक जगह चैन की
मुहैय्या हो जो
बिना कोई शर्त लगाये
करते हुए तस्लीम
'जैसे हो तुम वैसे' को

पूछा था मैं ने :

क्या जानते हो तुम ऐसी किसी जगह को ?
कहीं ज़्यादा तो नहीं है ना मेरा यह पूछना ?

कह रहे थे तुम जैसे अपनी ही एक खामोशी में :

तलाश के खेल में थका हारा
खोज रहा हूँ आज भी तो मैं
जवाब इसका.....

और सुना होगा तुम ने मेरे मौन में :

देखो जानती हूँ मैं ऐसी एक जगह को
जो बनायी थी मैंने तुम्हारे लिए
दिल में मेरे,
बेचैन है वो आज भी
तुम्हारे लौट आने के इंतज़ार में,
खुले हैं दरवाज़े
चले आओ बिना कोई शर्त के...
__________________________

(शदीद=तीव्र/severe,जिन्सी खवाहिशें=वासनाएँ/lust
रज़ामन्दी=स्वीकृति/acceptance
फ़ैसला साजी=जजमेंटल होना
नेकी बदी=भलाई -बुरायी, अच्छा-बुरा, पाप-पुण्य (समाज के बनाए नैतिक मापदंडों के संदर्भ में, तस्लीम=स्वीकार)

Saturday, 1 June 2019

Which One To Choose : Neera

स्वांत: सुखाय
========
(हिंदुस्तानी रूपांतरण के साथ)

Which One To Choose...
***********************
My feelings rising out in waves ,
High and low.
Oozing endlessly from
The deep Ocean of emotions....

Uncertainties engulf
My naive self,
Weaving hope and expectations
Together into a cobweb ...,

Puzzled about
What the future has in store
I succumb to myself,
Questioning  my being to,
And also ask myself
Which one to choose ?
Desires or duties !

~Neera

हिंदी रूपांतरण : Thanks to my Dearest Mom
=============================
चुनूँ मैं किसको ?
************
दीख रही है लहरों में
उमड़ती हुई भावनाएँ मेरी
निरंतर उठती और उतरती हुई
भावों के गहरे महासागर में,
निगल जाती है अनिश्चिततायें
मेरे सरल स्वयं को
बनाते हुए जाले
प्रत्याशाएँ और अपेक्षाओं के,
क्या छुपा है भविष्य के गर्भ में
बस इसी उलझन के साथ
करती रहती हूँ
बहुतेरी जिज्ञासाएँ स्वयं से,
हो जाती हूँ इसी क्रम में
परास्त अपने आप से
उठाते हुए प्रश्न
अपने होने पर भी,
और यह भी कि चुनूँ मैं किसको
वांछाओ को या कृतव्य को ?

~नीरा

Perfect Glass Vase : Neera

स्वांत: सुखाय

***********
(हिंदी भावानुवाद के लिए पापा को धन्यवाद)

TO RETURN HOME...,
##############
Jumbled with my own thoughts,
Each one just puzzling me enough
To lose and crumble myself to pieces.....

Seems I am stuck in
A cobweb of my own expectations
From the world,
Crashing away from the reality .....

The world, the world of people
I seem to know ,
Appears complete strangers to me....

I feel lost like
Alice in wonderland,
Searching for shadow
Where it’s just desert....

I am  just wandering about ,
Struggling to find some miraculous path
to return home,
to return home....



घर लौट जाने के लिए.....
############
ख़ुद के ही सोचों में
गडमगड हूँ मैं,
लगता ऐसा ज्यों
धकेल रहा है भरपूर
हर कोई मुझे
घनी पेचीदगियों में
करते हुए
चूर चूर और गुमशुदा मुझ को....

लगता है अटक गयी हूँ मैं
अपनी ही अपेक्षाओं के
मकड़जाल में
हो गयी हूँ मैं दूर
छिटक कर
ज़मीनी हक़ीक़तों से....

संसार, वह संसार
वहम था मुझे जानने जिस को
हो रहा महसूस आज वो
निहायत ही अजनबी मुझ को...

पा रही हूँ मैं खोई हुई ख़ुद को
जैसे कोई 'ऐलिस अद्भुत देश में'
तलाश रही हूँ छांव
जहाँ चारों तरफ़ है सिर्फ़ रेगिस्तान....

बस भटके जा रही हूँ मैं
करते हुई जद्दोजहद
ढूँढ पाने को कोई चमत्कारी राह
घर लौट जाने के लिए
अपने घर लौट जाने के लिए....

❤❤
Neera-2019

To Return Home : Neera

स्वांत: सुखाय

***********
(हिंदी भावानुवाद के लिए पापा को धन्यवाद)

TO RETURN HOME...,
##############
Jumbled with my own thoughts,
Each one just puzzling me enough
To lose and crumble myself to pieces.....

Seems I am stuck in
A cobweb of my own expectations
From the world,
Crashing away from the reality .....

The world, the world of people
I seem to know ,
Appears complete strangers to me....

I feel lost like
Alice in wonderland,
Searching for shadow
Where it’s just desert....

I am  just wandering about ,
Struggling to find some miraculous path
to return home,
to return home....



घर लौट जाने के लिए.....
############
ख़ुद के ही सोचों में
गडमगड हूँ मैं,
लगता ऐसा ज्यों
धकेल रहा है भरपूर
हर कोई मुझे
घनी पेचीदगियों में
करते हुए
चूर चूर और गुमशुदा मुझ को....

लगता है अटक गयी हूँ मैं
अपनी ही अपेक्षाओं के
मकड़जाल में
हो गयी हूँ मैं दूर
छिटक कर
ज़मीनी हक़ीक़तों से....

संसार, वह संसार
वहम था मुझे जानने जिस को
हो रहा महसूस आज वो
निहायत ही अजनबी मुझ को...

पा रही हूँ मैं खोई हुई ख़ुद को
जैसे कोई 'ऐलिस अद्भुत देश में'
तलाश रही हूँ छांव
जहाँ चारों तरफ़ है सिर्फ़ रेगिस्तान....

बस भटके जा रही हूँ मैं
करते हुई जद्दोजहद
ढूँढ पाने को कोई चमत्कारी राह
घर लौट जाने के लिए
अपने घर लौट जाने के लिए....

❤❤
Neera-2019