Sunday, 18 December 2022

दास्ताने आख़री मुलाक़ात : विदुषी सीरीज़



दास्ताने आख़री मुलाक़ात 

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[फ़लसफ़े(दर्शन)और नफ़्सियात (मनोविज्ञान) का ताउम्र तालिबे इल्म (विद्यार्थी) ...चीजों को ज़रा अलग ढंग से देखने की फ़ितरत...भुस के ढेर में सुई कहाँ छुपी है यह देख पाने की कुव्वत... इंसानी रिश्तों के मुसल्सल तजुर्बे....बड़े क़िस्से हैं मेरे पास. किरदारों से भी इन्पुट्स हासिल होते रहते हैं....उस पर थोड़ा असली घी मसालों का तड़का. यह दास्तान भी कुछ ऐसी ही है.]


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लुत्फ से भरपूर  रही थी "प्रेमी जोड़े" की वह गपचुप पहाड़ों की ट्रिप. सारे कमिटमेंट्स के परे forbidden fruit चखते 

हुए, रूहानी  प्रेम का ड्रामा करते हुए अपने अपने मक़सदों जी लेने की मशक़्क़त . अरली मिडल एज और दोनों ही शादीशुदा, दोनों के अपने अपने vaccum और volume....दोनो ही intellectual और ऊपर से शायर जाति के प्रानी याने करेला और नीम चढ़ा...दोनों ही अपने अपने करतबों को जस्टिफ़ाई करने में माहिर और ज़मीनी तौर पर अव्वल दर्जे के शातिर याने स्ट्रीट स्मार्ट.


रूमानी प्रेम का खूब ड्रामा हुआ. तस्वीर की तरह ही मर्द  ने सरकारी सर्किट हाउस में औरत का  हाथ अपने हाथों में  लेकर 'अमर प्रेम' पर लम्बी सी तक़रीर कर डाली थी और औरत ने  भी आँखों में आँसू भर कर गर्दन झुका, कोमलता का लबादा औढ 'सम्पूर्ण  समर्पण' का सजीव रोल कर दिखाया  था. प्रेम के भी कई रंग-रूप  होते हैं, एशियन पैंट्स के शेड कार्ड के नमूनों जैसे.


टैक्सी नैनीताल से काठगोदाम के लिए चलती है आगे ड्राइवर के बगल वाली सीट पर प्रेमी जोड़ा ज़िद करके बैठ जाता  है.. "हम दोनों एक ही सीट पर बैठेंगे वो भी आगे वाली सीट पर"....थोड़ी ना नुकुर  के  बाद ड्राइवर मान जाता है, गाड़ी चल पड़ती है.  ड्राइवर के पास ऑडियो केसेट्स का कलेक्शन गज़ब का था फरमाइश शुरू होती है गीत बजने लगते हैं.


जोड़े के मर्द और औरत की मंज़िलें जुदा जुदा थी , मर्द  को काठगोदाम से ट्रेन पकड़नी थी और औरत को  हल्द्वानी से बस. मर्द उदास था कि वह कुछ देर बाद अपनी 'जिंदगी' से जुदा हो जाएगा.वह एक महीने बाद अपननी साल गिरह  पर फिर मिलने की मंशा ज़ाहिर करता है, औरत उस से मुस्तकबिल (भविष्य)  की बात न करने और मौजूदा लम्हे को शिद्दत से जी लेने की बात करती है और ड्राइवर से अपनी पसंद का एक नग़्मा सुनवाने की गुज़ारिश करती है.." सिमटी हुई ये घड़ियाँ फिर से न बिखर जाएं..इस रात में जी लें हम इस रात में मर जाएं"

 

मर्द तय करता  है कि वह औरत को  हल्द्वानी तक छोड़कर फिर लौटकर काठगोदाम से ट्रेन पकड़ेगा, इस तरह वह दोनों कुछ देर और साथ रह सकेंगे. वही नग़्मा बार बार रिपीट करके बजाया जाता है 'सिमटी हुई ये घड़ियाँ'... 


जोड़े में मर्द बेचारा इस बात से वाकिफ़ नहीं था कि यह उन दोनों की आखिरी मुलाकात है, वह तो बितायी  रातों के तसव्वुर में बार बार डूबे  जा रहा था जब जब नग्मे की यह लाइन सुनता: 

"अब सुबह न आ पाये आओ ये दुआ माँगे..इस रात के हर पल से रातें ही उभर जाएं". औरत अपने प्यार की मैथेमैटिक्स की उस्ताद, "प्रेम यात्राओं" की शौक़ीन.


इसके बाद, गंगा में बहुत पानी बह कर समंदर में मिल गया मगर  आज तक इस का जवाब नहीं मिल पाया, किस ने किस को कब कब छला ?

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