ओ पुरुष ! आज का दिन है तुम्हारा ...
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अवदान तुम्हारा अनुपम है
समग्र जीवन के लिये
तुम बिन कहाँ है पूर्णता हमारे लिए
तुम वैकल्पिक नहीं
अनिवार्य हो हमारे लिए
निबाहते हो कितने किरदार जीवन में
तुम ही तो हो पूरक हमारे लिए
ओ पुरुष ! आज का दिन है तुम्हारा
पहुँचे तहेदिल से प्यार और सम्मान हमारा...
जब हो जाता है जीवन कठिन
तुम बन जाते हो
एक दृढ़ चट्टान परिवार के लिए
दस्तक से पहले ही
दे देते हो तुम प्रत्युत्तर द्वार को
आते है ऐसे ऐसे क्षण भी
जब सब कुछ लगता है बिखरता छितरता
तुम कर देते हो आसान सब कुछ
कर देते हो आलोकित हृदयों को
भर देते हो तुम गहरे ज़ख्मों को
यही तो है सौंदर्य तुम्हारी आत्मा का ...
एक पहेली है यह ज़िंदगी
जिसे करते जाना हाल ही तो जीना है
या कहें जीवन है एक रहस्य
जिसे बस जीए जाना है
तुम रहते हो तत्पर पल प्रतिपल
दूर करने सभी संदेहों को
तुम जब होते हो साथ हमारे
हो जाती है आसान मुश्किलें सारी
और लगने लगता है सब कुछ तरोताज़ा
बहुत कुछ है जिसके लिए हम स्त्रियाँ ऋणी हैं तुम्हारी ...
माना कि तुम भिन्न हो हम से
पर तुम में भी तो होती है एक स्त्री
क्यों नहीं उभरने देते जिसे कुछ प्राणी तुम जैसे
नहीं तो हो ना जाए यह दुनिया भी
एक स्वर्ग जैसी
ओ पुरुष ! आज का दिन है तुम्हारा
पहुँचे तहे दिल से प्यार और सम्मान हमारा...
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