प्लेटिनम रिंग...
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प्लेटिनम सोने से बेहतर है ना ? एंगेज्मेंट रिंग को देख कर किसी ने पूछ लिया था या कहें कि अपनी राय ज़ाहिर कर दी थी.
अक्सर मुस्कुरा देता था वह और सामने वाले को पुख़्ता एहसास हो जाता कि जैसे वह उस से मुत्तफ़िक है. रिंग लूज़ थी, निकल निकल जा रही थी, बार बार ध्यान बंट जाता...काम करते, पढ़ते, खाते, सोते उठते. डेन्सिटी ज़्यादा होने की वजह से मेटल का बौझ ज़्यादा महसूस होता था. इसीलिए तो उसी साइज़ और डिज़ाइन की गोल्ड रिंग से इस रिंग का वजन कोई दो तिहाई ज़्यादा था. उसने झेला, सम्भाला और आख़िर में उसे तय करना ही पड़ा कि उसकी 'नो अलटरेशन' थ्योरी कामयाब नहीं होगी...कितना ही यूज टू होने की कोशिश करे वह रिंग नहीं हो पा रही थी ठीक से एंगेज उसके साथ.
ज्वेलर के यहाँ गया, उसे कहा कि रिंग को छोटी कर दे. एक्सपर्ट कमेंट थी प्लेटिनम यूनिक मेटल है जनाब उसे काट कर झाला नहीं जा सकेगा सो नए सिरे से रिंग बनानी होगी. नया नाप लिया गया और बोला यह आसान काम नहीं, समय लगेगा कोई तीन सप्ताह.
बड़ा चैन आ गया था जब से रिंग रिमेकिंग के लिए दी गयी. वह सोचता था तब्दीली में नई होकर आएगी रिंग, बिलकुल उसी की बाएँ हाथ की रिंग फ़िंगर के नाप की. फिर तो हर समय पहन पाएगा उसे २४ गुना ७....बड़े सुकून से.
रिंग हाज़िर थी नई होकर, उँगली में भी फ़िट....मगर टाइट लगने लगी थी. हमेशा की तरह उसने ख़ामी खुद में ही देखी. उँगलियाँ फूली हुई है...ठीक ही तो है....आसानी से पहनी और निकाली जा रही है. जड़े हुए छोटे से डायमंड के साथ कितनी खूबसूरत लग रही है....ब्ला ब्ला. मगर चैन ओ सुकून कहाँ....उँगली और हाथ बौझ नहीं सम्भाल पा रहे थे इस प्लेटिनम रिंग का. ज्वेलर की राय थी कि महीना बीस दिन पहनिए आदत हो जाएगी, बस वक़्त की बात है.
दो तीन रातें गुज़ारी....कमिटमेंट वाला इंसान था...खुद से वादा किया कि जैसा भी हो आदत डाल लूँगा. मगर हाथ भारी, अजीब सा दर्द, ज़ेहन में तनाव....जिंदी की किसी भी रोज़मर्रा की बात को ठीक से नहीं सम्भाल पा रहा था. जो ख़ुशी उस 'फ़िट-फाट' रिंग को देख कर उसकी डेलिवरी लेते वक्त मिली, वह काफ़ूर होने लगी थी. रिंग की ख़ूबसूरती, क़ीमती होने का एहसास, मेटल की यूनिक प्रापर्टीज़, प्लैटिनम की नुदरत... सब गौण हो गयी थी उसके अपने सुकून के सामने. ना कुछ सोच पा रहा था, ना लिख पा रहा था, ठीक से इंटरैक्ट भी नहीं कर पा रहा था. लगता था उँगली में पड़ी रिंग धीरे धीरे उसकी ज़हनियत और रूहानियत को लील रही है. नफ़्सी तौर पर कमजोर पा रहा था वह खुद को. जब लूज़ थी तब भी हर लम्हे तवज्जो थी रिंग की जानिब और जब टाइट हुई तब भी. जैसे आज़ाब में फँस गया था वह.
नींद नहीं आ रही थी...किताब पढ़ी...फ़ोन पर हर सोसल मीडिया एप की सफ़र कर ली मगर नींद कहाँ. हाथ का बौझ बाजू में महसूस हो रहा था...सिर में धुँध और अब फटा, अब फटा का एहसास. अपने कमिटमेंट और कनविक्शन्स के परे सोचने लगा था वह....यह रिंग उसके लिए माकूल नहीं थी किसी भी नज़रिए से . हिम्मत जुटायी उसने....उतार दी और ज्वेलरी किट में होले से रख दी. उसके लिए कहा जाता है कि वह किसी के साथ कठोर नहीं हो सकता, उसके साथ भी जो उसके साथ कठोर, भारी और दुखदायी क्यों ना हो.
बेड पर आ गया था वो.आँखे मूँद कर सोने की कोशिश कर रहा था. सोच आ रहे थे और जा रहे थे..."मैं दो एक दिन बाद फिर से उस रिंग को पहन लूँगा, सहन करूँगा..मुश्किल है नामुमकिन तो नहीं. चीनी लोगों ने तो टाइट शूज़ पहन कर नस्लों तक की ख़ातिर छोटे पाँव हासिल कर लिए. कमिटमेंट और कनविक्शन भी कोई चीज़ होती है."
नींद के आग़ोश में समा गया था वह.