Saturday, 4 May 2019

जब होते हो तुम उदास : विजया

थीम सृजन : रिश्ते
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जब भी होते हो तुम उदास....
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जब भी होते हो तुम उदास
उमड़ आता है मेरा प्रेम
व्याकुल होकर,
हो जाती है फलित
एक दर्द भरी उत्कंठा मुझ में
कर पाने को हल्का
तुम्हारे अंतर्हृदय में लगी चोट को,
हिचकिचा जाती हूँ मैं फिर भी
और रोक भी लेती हूँ मैं स्वयं को....

रह रहे हैं यद्यपि एकमेव हो कर
साथ साथ हम
एक लम्बे से समय से
बाँटते हुए अंतरंग के हर भाव को
बहिरंग के हर रंग को,
संभवतः यह है
एक अतिशय स्वामिगतता की राह
नहीं करना चाहिए
जिसका अंध अनुसरण मुझ को....

तुम तो वो हो
जो होते हो सदैव प्रवृत
अपनी समस्त ऊर्जा के संग
अपने ही अवलंब पर आगे बढ़ने को
उजागर करने उन गहराईयों को
जानते हो जिनको मात्र तुम ही,
एक ऐसे समग्र मानव
हो सके जिससे प्रेम और आदर एक संग.....

मैं स्वयं भी तो हूँ शापित
ऐसे ही कुछ अंधेरों से
समझ पा रही हूँ इसीलिए
आवश्यकता एवं अनिवार्यता
उन कन्दराओं के गवेषणकी
जो होती है स्थित
कभी धरातल के नीचे
कभी पर्वतों के अंदर,
होगी ना विवेकशीलता
जिज्ञासाओं को टाल देने में,
होगी ना होशमंदी
सवालों को नज़रंदाज़ कर देने में ?

संभाल पाएँगे हम इसी प्रकार
गहनता तक प्रसरित
अपनी कोमलता की समृद्धि को,
बचना है हमें अनावश्यक पड़ताल से
उस मुखर मौन की
रखना है जिसको अक्षुण
हम दोनों में से प्रत्येक को.....

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