सच्चा प्यार....
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अपनी ही वांछाओं को देते हुए शब्द
कर डाली थी किसी ने
तुलना प्यार की
एक झिमलिलाते उफनते शेम्पेन के ग्लास से...
किंतु गंवा देता है शेम्पेन
झिलमिलाहट अपनी
हो जाता है जब पुराना
नहीं रहता ज़िंदा ख़ुमार और नशा उसका
पड़ जाता है हो कर सपाट वह
खो कर
अपनी शानदार चमकीली बुदबुदाहट....
नहीं है सच्चा प्यार कोई शेंपेन...
होता है प्यार निर्मल जल सा
पवित्र सुशीतल भरपूर जीवंतता से
बुझाता है जो प्यास रखते हुए होश में
जगाता है जो ताज़गी पल प्रतिपल
नये पुराने के भेदों से दूर....
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