मैं हूँ राधा...
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मैं हूँ प्रेम की पूर्ण परिभाषा
मैं हूँ प्रेम की आबोली अनलिखी भाषा...
मैं हूँ राधा,
मैं नहीं हूँ आकर्षण
रूप और यौवन का
ना हूँ मैं पिपासा अधरों की
ना ही मैं रसिक का रास हूँ
ना हूँ मैं कोई मूरत माटी की
ना ही मोहताज
किसी परिपाटी की...
कान्हा !
मैं तो हूँ अंदर तुम्हारे
बाहर कहाँ ?
कहाँ हूँ मैं अलग तुम से
झांको ज़रा
मैं हूँ समायी तुझ में
देखोगे तुम यदि बाहर
पाओगे बिछुड़ी हूँ तुम से मैं...
ऐसे में मेरे कान्हा !
कैसे समेटोगे मोहे
अपनी बाहों में ?
कान्हा !
दूर हो कर भी
तुम्हारे सब से पास हूँ
मैं तो तुम्हारी श्वास-निःश्वास हूँ
तुम्हारे अश्रु हूँ, तुम्हारा मृदु हास हूँ
मैं तुम्हारे हृदय की एकाकी आस हूँ....
कान्हा !
मैं ही तुम्हारी तन्हाई हूँ
मैं तो तुम्हारी परछाई हूँ
तुम्हारे सभी संबंधों में गौण हूँ
मैं तो बस एक चिर मौन हूँ
तभी तो प्रश्न यह अबूझ
जिह्वा पर सब के
मैं कौन हूँ, मैं कौन हूँ ?
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