सम्बन्ध
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सम्बन्धों में बातें होती है
एकत्व की, विलय की
एक प्राण दो देह की
आत्मिक जुड़ाव की
और भी बहुत से
मुहावरे और कहावतें
किंतु क्या संभव हुआ है
दो व्यक्तियों का एकमेव हो जाना ?
बहिरंग में देखें तो
आकार प्रकार अलग
आँखों की पुतलियाँ अलग
उँगलियों के निशान अलग
अंतरंग में देखें तो
आत्मा अलग
जीव अलग
पूर्वजन्म की योनि अलग
ऋण बंधन और कर्म बंधन अलग....
सम और बन्ध
मिलकर बना है सम्बन्ध
अपेक्षा है सम की
व्यवहार में
अनुभूति में
अभिव्यक्ति में
मुखर हो या मौन
किंतु मूल में दीर्घ काल में
सम को करना होगा मैंटेन
विषमता है घातक संबंधों के लिए....
आदान प्रदान
अंडर करंट है संबंधों का
परस्पर आदर
एक दूजे को स्पेस देना
आपसी समझ और सहनशीलता
सीमाओं की विवेक सम्मत स्वीकृति
यही तो बनाए रखता है रिश्तों को....
हम तुम एक हैं
वादा करते हैं ज़िंदगी भर साथ रहेंगे
हमेशा वफादार रहेंगे
बहुत सुंदर मिशन स्टेटमेंट
प्रतिबद्धता, निष्ठा से निबाहना
ऐक्शन प्लान
सहजता, अकारणता, प्रयासरहित
शब्द पलायन है सच से
एक जाना अनजाना षड्यंत्र
किसी को टेकन फॉर ग्रांटेड लेने का....
मानवकृत होते हैं सम्बन्ध
मान भी लें कि ताल्लुक़ है उनका
जन्म जन्मांतरों से
लेकिन इन्हें जीना तो होता है हमें
दिन प्रतिदिन here and now
ठीक वैसे ही जैसे
ख़ाना पीना, सोना जागना
साँस लेना, नित्यकर्म पूरे करना
ड्रेस अप होना, बीमार और स्वस्थ होना
पढ़ना, अर्जन सृजन विसर्जन करना
ये सब हम जब सप्रयास करते हैं
तो रिश्तों में क्या है ऐसा
जो जारी रह सके बिना श्रम के ?
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