Sunday, 10 September 2023

बोथ वे ट्रैफिक : विजया

 बोथ वे ट्रैफिक....

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खूब सुने हैं "सरमन"

पढ़ा, जाना और समझा भी है 

गूढ़ ज्ञान उस ऊँचे वाले प्रेम का 

जो हुआ करता है 

अप्रयास,अपेक्षा रहित सहज नैसर्गिक...


नहीं इनकार मुझे 

इस पावन भाव से 

जो अलौकिक है,दिव्य है, 

और है परम पवित्र,

होता है जो घटित 

पूर्णत: मुक्त हो जाने पर 

हमारे मोह माया लोभ अहंकार से 

किंतु लग जाती है उम्रें ऐसा हो जाने में 

तो क्या नहीं पियें हम यह अमृत 

क्या नहीं जियें हम इस दिव्यता को ?


हमारे आपसी रिश्तों में 

अपना सकें हम यदि निश्छल प्रेम 

बदल जाएगा अन्दाज़ रिश्तों को जीने का,

बेहद ज़रूरी है रिश्तों में होना 

प्यार के एहसास की नमी का 

रेत भी हो ग़र सूखी 

तो निकल जाती है वह मुट्ठी से...


मेरे दोस्त सुन !

रिश्तों में अकड़ नहीं,

चाहिए होती है पकड़

एहसासों में महसूस होती है जो अदृश्य सी 

जिसे कह सकते हैं थामना...

हाथों में हाथ देकर या लेकर आग़ोश में 

तकलीफ़ में साथ देकर 

लड़खड़ाने पर संभाल कर 

या दे कर  कंधा अपना 

ताकि कर सके कोई बौझ हल्का दिल का...


और "वन वे" नहीं,

यह होना चाहिए "बोथ वे"

ताकि ज़िंदगी का ट्रैफिक 

बिना किसी ब्लॉकेज के 

चल सके लगातार,

बात सिर्फ़ आपसी व्यवहार की है 

जो मानवीय है,ज़मीनी है, 

किताबी या अपवाद सा नहीं...

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