Sunday, 10 September 2023

सपने और हक़ीक़त

 सपने और हक़ीक़त : एक और आयाम 

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सपने नहीं रहते फ़क़त सपने 

बन जाते हैं वे जब हक़ीक़त ज़िंदगी की 

ना बिखरते हैं ना टूटते हैं 

बस जिये जा रहे होते हैं 

ख़ुशगवारी के साथ पुरजोश पुरहोश 

छुपाने लुकाने को कुछ भी नहीं होता 

दिल में उमंग अधरों पर मुस्कान 

और फिर से कुछ और नये सपने 

बंद आँखों के भी, खुली आँखों के भी...


क्यों उलझें हम 

सपनों और हक़ीक़त के अंतर को खोजने में 

क्यों ना जियें हम हर पल 'यहीं और अभी'*

इसी सोच के साथ 

कि यही तो है पल आख़री...


टूट जाते हैं ज़िंदगी के आईने 

अक्सर हमारी ही गफ़लत से 

या कुछ ऐसी वजह से 

होता नहीं अख़्तियार जिस पर हमारा 

देख सकती है हमारी होशमंदी दोनों को ही 

और बिना ज़ाया किए समय और ऊर्जा 

चुन लेनी होती है हमें कोई राह 

जिसमें विगत से ना चिपक कर 

आगत की तरफ़ बढ़ जाने का जज़्बा हो ...


होते हैं हम अभिनेता ही 

निबाहते हैं बहुत सी भूमिकाएँ 

क्यों ना अभिनय करें हम इस तरह जैसे जी रहे हों जीवन 

क्यों ना जियें हम इस कदर जैसे कर रहे हों अभिनय 

आख़िर हो जाना है हम सब को ही तो रूखसत 

इस दुनिया के रंग मंच से...




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