Sunday, 19 February 2023

बाग़ी फ़रिश्ता : आकृति जी

 बाग़ी फ़रिश्ता 

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औरों से जुदा औ मुख़्तलिफ़ है वो 

दिखते है पीठ पर 

निशान ख़ंजर के वार के 

फिर भी बैखोफ ,बेपरवाह

और बहोत खुश है वो...


औरों सा नहीं  है वो 

परे है सब से 

बाग़ी है मगर फ़रिश्ता है 

सच में तुम जिसे कहते हो, 

वो एक मिसफ़िट (Misfit) है...


अपने ज़ख्मों को पहने है वो 

पैरहन की तरह 

इनकार है उसे क़ायदों और दस्तूरों से 

जब जब रोते हो तुम

थाम लेता है तुम को वो 

जुदा करता है आग़ोश से 

लाकर तवस्सुम तिरे लबों पर 

हर दर्द से वाक़िफ़ है वो 

क्यूँकि हर लम्हा गुजरता है वो उस से...


चुप रहता है वो क्यूँकि 

बोलते नहीं है ना 

जो लौट आते हैं जन्नत से 

कहाँ कुछ बचा भी तो रह जाता है 

कुछ भी कहने को,

बस सुनता रहता है वो 

अफ़साने अश्क़ों के 

और रुका रहता है साथ में 

तूफ़ान के गुजर जाने तक...


गिर गया है वो फ़ज़ल से 

छोड़ चुका है उन सब को 

जो करते थे दावे उस से प्यार करने के 

छोडा है उसने 

महज़ अल्फ़ाज़ बोलकर मोहब्बत करने वालों को 

क्यूँकि नहीं देख पाते थे वे ज़ख़्म उसके 

जो खाए थे उसने जंगे ज़िंदगानी में...


राज है एक उस का

लगी थी चोट उसके दिल को 

मरना चाहने लगा था वो 

यही तो वजह थी 

ठान ली थी उसने ना उड़ने की...


जानते हो तुम सब 

कभी भी मरते  नहीं है फ़रिश्ते 

बस गिरते हैं डूबते हैं 

इसीलिए तो 

वह गिर कर डूब गया है इश्क़  में 

आ गया है उसको यक़ीन 

के नहीं ज़रूरत है उसको अब ऊपर लौट जाने की...


यह बाग़ी, मिसफ़िट, जलावतन है 

अंदर बाहर मगर हैरतअंगेज़ है 

किसी भी शुबहा की गुंजाईश  कहाँ 

गिर पड़ा है वह फ़ज़ल से 

खो चुका है बहुत कुछ 

मगर पा भी लिया है बहुत कुछ...


नहीं करता है समझौता ज़िंदगी से 

बाग़ी फ़रिश्ता 

नहीं है वह इस दुनिया में फ़िट' होने की ख़ातिर

ना पहुँचाओ चोट उसकी खूबसूरत जिल्द को  

आया है वह ललकारने बहाले साबिक़ को...


जन्नत को छोड़ा है उसने 

गिरा है धरती पर 

मगर ऐसा है वो 

जो नहीं छोड़ता है  बीच राह किसी को 

वो है एक  बाग़ी फ़रिश्ता 

देता है वो साथ हर कदम पर सब को...


हाँ फ़िलहाल दुःख देगा यह वक्त 

तुम थोड़े से ज़ख़्मी भी हो जाओगे 

मगर आख़िर में 

यह होना भी क़द्र व क़ीमत का होगा...


हो सकता है तुम्हें महसूस हो तनहा तनहा 

मगर वह तो साथ है तुम्हारे हर दम 

जानते  हो तुम

कि गुजर रहा है वह  किस अज़ाब से 

थामे रखेगा वो तुम्हें गोंद की माफ़िक़ 

जानता है वह लड़ना, 

उसे मालूम है जंग वो  ही  जीतेगा...


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बाग़ी=विद्रोही-rebel

मुख़्तलिफ़=भिन्न-different

फ़ज़ल =कृपादृष्टि-grace

जलावतन=देश से बाहर किया हुआ-outcast

बहाले सबिक=यथा स्थिति-Status quo

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