विदुषी का विनिमय सीरीज़
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चौथे सेंटर का प्रेम
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[फ़लसफ़े(दर्शन)और नफ़्सियात (मनोविज्ञान) का ताउम्र तालिबे इल्म (विद्यार्थी) ...चीजों को ज़रा अलग ढंग से देखने की फ़ितरत...भुस के ढेर में सुई कहाँ छुपी है यह देख पाने की कुव्वत... इंसानी रिश्तों के मुसल्सल तजुर्बे....बड़े क़िस्से हैं मेरे पास. किरदारों से भी इन्पुट्स हासिल होते रहते हैं....उस पर थोड़ा असली घी मसालों का तड़का. यह दास्तान भी कुछ ऐसी ही है.]
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मीतू को प्लानिंग कमीशन में होना चाहिए था, खूब दिमाग़ चलता था उसका "फूल प्रूफ़ प्लान" बनाने में. हब्बी ज़रा दफ़्तर के काम से कोई दो सप्ताह के लिए मुल्क से बाहर गए हुए थे ऐसे में विदुषी को कोई एडवेंचर प्लान करने की खलबली मच गयी.
नंद से उसकी मुलाक़ात सोसल मीडिया पर हुई थी. दोनों ही शायराना तवियत के थे. ब्लोग्रस जगत में दोनों ही शिरकत करते थे. परिचय का दायरा ज़रा और बढ़ा. दोनों जी टॉक पर चैट करने लगे. फिर फ़ोन नम्बरों का विनिमय हुआ और उसके बाद तो विविध विषयों पर इन'रेक्शन होने लगा. इश्किया कविताएँ सुनी और सुनायी जाने लगी. नंद जार जार रो देता था मीतू की कविताएँ सुनकर और मीतू भी भावुक हो जाती नंद की रिसेप्टिवनेस को देख कर. बड़े दुःख सुख होते दोनों के बीच देर रात तक. म्यूचूअल प्रेज क्लब का उद्घाटन और संचालन परवान चढ़ गया. अरे हाँ, जैसे नंद का नामकरण विदुषी ने किया था वैसे ही विदुषी को नंद ने मीतू नाम दिया ..प्यार में नाम परिवर्तन भी एक आवश्यक स्टेप होता है रेट्रो कल्चर में. अब हम भी हमारे नायिका और नायक को मीतू और नंद ही कहेंगे.
दोनों ही अपने फ़ोर्टीज़ में, इसलिए नातजुर्बेकार नहीं. मीतू और नंद के शहरों के बीच कोई overnight journey का अंतर था. इंटर्नेट पर आरम्भ हुए संसर्ग ने रूबरू का रूप ले लिया था. दोनों प्यासे अब एक दूसरे को परोक्ष से प्रत्यक्ष जल सेवा देने लगे थे. करेला और नीम चढ़ा, जब अधूरे ज्ञानियों का मिलन होता है तो ऐसे रिश्तों में लम्बी चौड़ी दार्शनिक बातें भी होती है, ओशो रजनीश की किताब का शीर्षक ज़रा उल्टा हो जाता है समाधि से सम्भोग (Superconsciousness Talks to Sex).....राम से काम. खूब रोमांस और आध्यात्म झड़ता था. यह फ़ेज़ भक्ति और ज्ञान योग के यौगिक का था, इसकी सारी डिटेल्स फिर कभी.
हाँ तो मीतू ने एक पक्का प्लान बना लिया कि दोनों प्रेमी नैनीताल की वादियों में मिलेंगे और प्रकृति की गोद में साथ साथ टाइम स्पेंड करेंगे, घूमेंगे, फिरेंगे...और मौज मस्ती करेंगे. आपसी अंडरस्टेण्डिंग बढ़ाएँगे.
मीतू को नैनीताल के भूगोल का पता था. इतिहास भी जिया था उसने. दो तीन दफ़ा वह वहाँ अपने हब्बी जी के साथ आ चुकी थी जिस बेचारे के साथ उसका हर समय ज्वलंत भौतिक और मानसिक कम्पैटिबिलिटी इश्यू था, हालाँकि उसकी कमाई और खर्च पर ठाठ -बाठ से जीने में कोई भी इश्यू नहीं. हर बात के लिए ऊपरा ऊपरी लोजिक और जस्टिफ़िकेशन वह खोज निकाल लेती थी.
मीतू नंद को लेकर उसी होटेल में जा पहुँची, जहां पिछली ट्रिप में अपने हब्बी जी के साथ ठहरी थी. होटेल्स में आइ.डी. की ज़रूरत उस समय भी होती थी लेकिन आजकल जैसी कड़ाई नहीं थी और फिर विदुषी ओह नो मीतू ठहरी स्मार्ट और वाक चतुर मेनेज कर लिया और पति-पत्नी के तौर पर दोनों उस होटल में चेक इन कर लिए.
नंद निम्न मध्यम सांस्कृतिक और आर्थिक पृष्ठभूमि से था तो मीतू मध्यम से उच्च मध्यम स्तर पर प्रोमोट हो चुकी थी. दोनों के रहन सहन और नज़रिए में काफ़ी फ़र्क़ था. सम्बन्धों के संदर्भ में जहां नंद उतावला और क्रूड था वहाँ मीतू ज़रा स्लो, टेस्टफूल और पोलिश्ड. नंद ठहरा अव्वल दर्जे का 'दूसरी तरह का चालाक', सो उसने खुद को सरेंडर कर दिया एक सोची समझी रणनीति के तहत ताकि उसके जीवन और बौद्धिक स्तर की कमियाँ कवर अप हो जाए और मीतू का ईगो भी खूब बुस्ट हो सके. नंद की आँख हमेशा अर्जुन की तरह चिड़ियाँ की आँख पर रहती तो मीतू एक वन की चिड़ियाँ बन कर उड़ती रहती. मीतू में गुरुडम का उदय हो गया था उसका inferority complex superiority complex में तब्दील हो गया था. नंद एक आज्ञकारी शागिर्द की तरह ज़ुबानी ज्ञान लेने लगा था और एक समर्पित कमजोर प्रेमी का रोल अदा करने लगा था, जो एक तरह का इंटेलेकचुअल फ़ोर प्ले था.
चाय के प्यालों से भाप उड़ रही थी. मीतू और नंद सोफ़े पर सट कर बैठे थे. अर्थ तो व्यय हो ही रहा था, स्पर्श काम को जगा रहा था और धर्म व मोक्ष का कोकटेल मीतू साक़ी बन कर अपने भाषण और गेसचर्स के ज़रिए परोस रही थी...जो नंद जैसे छप्पन छेद वाले इंसान में उड़ेलने के साथ साथ ही बाहर बह जाता था.
मीतू कह रही थी : "समान्यत: हम सब तीन सेंटर्स से संचालित होते हैं. आध्यात्मिक उत्थान में चौथा सेंटर ऐक्टिव होता है. वही प्रेम का केंद्र है."
नंद के ख़यालों में बस एक मात्र सेंटर था जिसे वह परिधि में भ्रमण करते करते भी देख पा रहा था. दत्तचित्त होकर सुनने का अच्छा ख़ासा नाटक कर रहा था वह. चेहरे पर आश्चर्य और अनुमोदन के भाव ले आया था नंद. उसने मीतू का हाथ अपने हाथों में ले लिया था. नव आध्यात्म के लिए देह से अधिक क्या सुचालक हो सकता है.
उत्साहित हो कर मीतू आगे कहने लगी, "मैं तुम्हें प्रेम दूँगी तो वह चौथे सेंटर का ही होगा, क्योंकि मेरा प्रवाह चौथे सेंटर का है. तुम्हारा दूसरा तल ज़रा कमजोर है, पहला और तीसरा पुरुषेण अहंकार से भरा हुआ है...उसका रिफ़ाईनमेंट ज़रूरी है. चूँकि मेरा प्रवाह चौथे सेंटर का है, हम मिल कर चौथे सेंटर का प्रवाह संग संग अनुभूत करेंगे."
नंद को लेने और देने दोनों की थ्योरी और प्रैक्टिकल आते थे. कुशल खिलाड़ी था नंद इस खेल का और उसके लिए मीतू अंधे के हाथ बटेर जैसी थी. दोनों के बीच का गेम Win Win वाला था. अच्छा सौदा वही जिसमें दोनों को नफ़ा हो.
मीतू को आत्माओं और हृदयों के एकत्व की बातों की राह दैहिक सम्बन्धों में उतरना अच्छा लगता था तो नंद को "डिरेक्ट एक्शन" में रुचि थी. ज़रूरतें बड़े बड़े कॉम्प्रॉमायज़ करा देती है सो यह अल्पक़ालीन प्रेम फलने लगा था नैनीताल के उस होटल के कमरे में...दोनों ही चौथे सेंटर के प्रेम की अनुभूति के अभियान में प्रयाण करने लगे थे. नंद को कथित केंद्रों की परिभाषायें जानना बेमानी लगता था उसके तजुर्बे ने उसे अच्छी तरह जता दिया था कि मीता मा का टार्गेट कौनसा केंद्र है.
सुअवसर पाकर दोनों ने अपनी आध्यात्म-पिपासा को भरपूर मिटाने के उपक्रम किए किंतु प्यास बढ़ती गयी ज्यों ज्यों मय का अनुपान किया ('दर्द बढ़ता ही गया ज्यों ज्यों दवा की' के तर्ज़ पर).
दोनों का एनर्जी लेवल कम्माल के स्तर पर था.