Friday, 23 July 2021

स्त्री : चंद सवाल - विजया


स्त्री : चंद सवाल 

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पुरुष प्रधान व्यवस्था में 

स्त्री कहाँ कर पाई है साबित 

अपने होने को 

सदियों के संघर्षों के बाद भी ?


औढ कर अस्तित्व 

दोयम दर्जे का

पाल कर भ्रम 

बराबरी का 

कब तक जिये जाएगी स्त्री ?


लपेट कर आवरणों में 

लुभावनी सनदें भले ही दे दे 

सचमुच उसे 

उसके न्यायपूर्ण अधिकारों को 

क्या दे पाएगा पुरुष ?


ज़ाहिर है देह और मन का अंतर 

मर्द और औरत का 

लेकिन नहीं है यह अंतर 

कमतरी और बढ़तरी का,

कब स्वीकारेगा इस सच को 

यह झूठा समाज ?


भरम रजामन्दियों का 

ख़ामियाज़ा पाबंदियों का

क्यों उठाएगी 

इक्कीसवीं सदी की 

सक्षम और होशमंद स्त्री ?


मर्द को सब कुछ मुआफ़ 

औरत को सजा अनकिए गुनाह की

कब होगा निराकरण 

शताब्दियों की 

इस विसंगति का ?


आज़ादी के मायने 

कुछ और हैं मर्द के लिए 

बंधी हुई आज़ादी ही 

मयस्सर है औरत के लिए 

मिट पाएगा यह फ़र्क़ 

क्या कभी भी ?

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