अपनी दास्ताँ....
########
कभी कभी
ऐसी भी कुछ बात होती है,
जिंदगी बीते वक्त से ज्यादा
ना जाने क्यों, हसीन होती है...
पता नहीं राज क्या है
बातें चंद अनकही होती गई
गुजरते वक्त के साथ
मेरी नब्ज सही होती गई....
मुहब्बत जो पुरानी थी,
नई नवेली होती गई
ताज़गी का आलम ना पूछो
हर पल मैं नई होती गई...
बेमानी थी गिनती उम्र की
धड़कने दिल की जवाँ होती गई
क़िस्मत से तू मिला मुझ को ऐ साथी !
जमाने में दास्ताँ अपनी बयां होती गई...
No comments:
Post a Comment