पेंटिंग : सहज सृजन
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सुर ओ ताल जुदा जुदा....
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बिखरा बिखरा है सब कुछ
जीवन अज़ाब हो चला है
ना जाने ज़िंदगी में
ये कैसा ज़हर पला है…
दोपहर हो चली अब
सूरज फिर भी हल्का है
हर शै में समाया ज्यों
धुँधलका ही धुँधलका है…
जो बसाए थे गाँव हमने
आज वहीं से जिलावतन है
बाग़बाँ थे हम जहां के
उजड़ गए वो चमन है…
रिश्तों में ठगे गए हम
मोहब्बत के भी तो मारे हैं
जमाने ने ठुकराया तो क्या
खुद तो खुद के हम प्यारे है...
महफ़िल सजी धजी है
साज़िंदे भी तो माहिर है
सुर और ताल जुदा है सबके
फ़क़त शोर ही बज़ाहिर है…
हैरां न हो ए साक़ी
ग़र टूटे सभी पैमाने हैं
चल दिए पावों पे मैकश
मुबारक तुम्हें मैखाने है...
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