Tuesday, 5 August 2014

शुभ कर्म -गीता से : (नायेदाजी)

शुभ कर्म -गीता से .
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नायेदा दी ने गीता और धम्म्पदों पर काफी कार्य किया है ..उनमें छिपे गूढ़ संदेशों को सरल भावानुवाद कर हम जैसों तक पहुँचाने का एक प्रयास है यह उनका ..उनके द्वारा रचित यह रचनायें यहाँ समय समय पर महक द्वारा पोस्ट की जाती रही हैं आज मैं कुछ बांटना चाहूंगी ..आप सबसे ..

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श्रीभगवानुवाच -
पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते।
न हि कल्याणकृत्कश्चिद् दुर्गतिं तात गच्छति !! 6:40 !!


The lord of Sri said :

O son pf Pritha, neither here in this world nor in the next is a sincere person defeated. Such a person, my dear friend, is never on the road of misfortune.

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सरल भावानुवाद :


नहीं होता है पतन
उस मनुज का
जो शुभ करम करता है मन से
नाश ना होता
उस मानव का
इस लोक-वास पर लोक गमन से........

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चर्चा गीता के छटवें अध्याय के चालीसवें श्लोक की हो रही है.

एक दृढनिश्चयी टीम अपनी कमियों को समझ तथा सुधार कर बेहतर प्रदर्शन करते हुए शुद्ध साधनों से उच्चतम उदेश्यों को प्राप्त कर लेती है. पराजय और दोषारोपण के भय का निस्तार होने पर टीम का प्रत्येक सदस्य निर्भय होकर परिणाम की फ़िक्र किये बगैर पूरे जोश और होश से कार्य संपादन में जी-जान से जुट जाता है. एक जिम्मेदार लीडर के लिए परिणाम से अधिक महत्वपूर्ण है कार्य की पद्धति व प्रक्रिया, क्योंकि उसे पूर्ण विश्वास है की कोई भी कार्य सुरीति से किये जाने पर सफलता सुनिश्चित है.

सार्थक है सत्कर्म का असफल प्रयास भी,
व्यर्थ है अपकर्म का सफल विन्यास भी..........


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