Friday, 1 August 2014

कोई बुलावा तो नहीं...(मेहर)

कोई बुलावा तो नहीं...
#######
कुछ तल्खी है
कुछ तुर्शी,
मिला है 
जो भी 
है वो मांगने से मेरे
पी ही रही हूँ 
शिद्दत से ;
कोई पछतावा तो नहीं.

थी मेरी किस्मत 
ना मिले फूल
दामन को मेरे 
शुक्रिया !
करम तेरे 
चुभाये है तलवों में 
बहारों ने कांटे ; 
कोई दिखावा तो नहीं.

बख्से हैं 
कुदरत ने मुझ को 
ये रोग 
ख्वाहिशों के,
हद में ही रहा
भटकता 
ये गुरुर मेरा ;
कोई छलावा तो नहीं. 

ना उडाई 
गर्द राहों में हमने 
ना बनाये
नक़्शे कदम कोई,
बरपा है 
ये किस्से 
मिरी तेजरफ्तारी के;
कोई बहलावा तो नहीं. 

मैं जिगर को
ज़ख्म ना दे पायी,
ना दाग 
लिया तू ने जबीं पर, 
मेरी झुकी सी निगाह
तेरा उठा सा सर
कुछ कहता है 
अनकहा सा ;
कोई बुलावा तो नहीं. 

(तल्खी=कड़वाहट, तुर्शी=खटास, जबीं=ललाट, करम=कृपा )

No comments:

Post a Comment