Monday 4 August 2014

नींव और कंगूरे : (अंकितजी)


नींव और कंगूरे

# # # #
और  गहरी
और  गहरी
खोदनी है नींव
तुझे अब भी 
अगर करनी है 
तामीर तुम्हे
एक उँचे
खूबसूरत महल की………

जब तलक 
नहीं मिलेगा 
माटी का लगाव
नहीं आएगा
तेरे भरोसे में
नीला आसमान 
जिसे नहीं है
शौक देखना कत्तई 
किसी बुलंद इमारत के
कांगूरों को
उसकी बाहरी चमक को……..

गर नहीं होगा
तेरा जुड़ाव
गगन की सहधर्मिणी
जीवन संगिनी
महबूबा
ज़मीन से,
सूँघेंगे धूल
पल भर में
तुम्हारी सतरंगी कल्पनाएं
तुम्हारे सृजन के सपने………..

खातिर इसीके
हे सृजक !
और गहरी
और गहरी 
खोदनी है नींव
तुझे अब भी ;
करनी है गर 
तामीर तुम्हे
एक उँचे
खूबसूरत महल की………

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